Thursday, July 10, 2025
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पॉकेटमार प्रधानमंत्री” और “अचेत मुख्यमंत्री” के बयान पर घमासान। प्रतिउत्तर चरवाहा विद्यायल के प्रोडक्ट

पटना, बिहार — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बिहार दौरे के बाद राज्य की सियासी गर्मी कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई है। इस तपिश में एक और चिंगारी जोड़ते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पीएम को “पॉकेटमार प्रधानमंत्री” और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को “अचेत मुख्यमंत्री” करार दे डाला। प्रेस वार्ता के दौरान यह भाषा सुनकर लगा मानो नेता प्रतिपक्ष राज्य नहीं, किसी नुक्कड़ नाटक में संवाद बोल रहे हों।

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तेजस्वी यादव के इस बयान के बाद सियासी हलकों में मानो भूचाल सा आ गया। भाजपा और जदयू नेताओं ने इसे न सिर्फ अमर्यादित भाषा बताया, बल्कि इसे लालू परिवार की ‘विरासत’ का परिणाम भी बताया — वो विरासत जिसमें चारा घोटाले से लेकर नौकरी के बदले ज़मीन तक का इतिहास दर्ज है।

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उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने तेजस्वी के बयान को सीधा दीवार फिल्म से जोड़ते हुए व्यंग्य किया कि “जिसके घर में अपराध की परंपरा है, वही दूसरों को अपराधी कह रहा है।” उन्होंने आगे कहा कि तेजस्वी यादव का बयान इस बात का संकेत है कि लालू परिवार अब पूरी तरह हताशा में जी रहा है।

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जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए तेजस्वी को “चरवाहा विद्यालय का असफल प्रोडक्ट” बता दिया। उन्होंने कहा कि “जिस घर में भाषा और मर्यादा का कोई संस्कार न मिला हो, वहां से ऐसे ही शब्द निकलते हैं। प्रधानमंत्री से विचारों का मतभेद हो सकता है, लेकिन लंपट शब्दावली में बयान देना लोकतंत्र का अपमान है।”

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लोजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी तल्ख़ी में जवाब देते हुए 90 के दशक की याद दिला दी — वह दौर जब लालू यादव के शासनकाल में बिहार से पलायन आम बात बन गई थी। चिराग ने कहा, “तेजस्वी यादव को यह याद रखना चाहिए कि जनता अब जाग चुकी है। अब कोई घर-ज़मीन छोड़कर भाग नहीं रहा, लोग लौट रहे हैं। और यह बदलाव एनडीए सरकार की नीतियों की वजह से आया है।”

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तेजस्वी यादव का यह बयान और उसके बाद की प्रतिक्रियाएं यह साफ करती हैं कि लालू परिवार की राजनीति अब भी पुरानी पटकथाओं पर आधारित है — जिसमें आरोप हैं, आक्रोश है, लेकिन समाधान नहीं। और जब विचारशून्यता हावी हो जाती है, तो भाषा नीचे गिरने लगती है।

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बिहार की जनता शायद अब यह भली-भांति समझने लगी है कि आरोप लगाने वालों की अपनी जेब कितनी साफ है, यह जांचने के लिए उन्हें केवल इतिहास के पन्ने पलटने की ज़रूरत है — चारा घोटाले, बेनामी संपत्तियाँ और अदालत के फैसले आज भी दस्तावेज़ हैं।

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