Thursday, July 10, 2025
HomeTop Storiesलोकतंत्र पर लाठी की छाया,बिहार से दिल्ली तक बाहुबलियों की छाया

लोकतंत्र पर लाठी की छाया,बिहार से दिल्ली तक बाहुबलियों की छाया

🧨 जब लोकतंत्र पर पड़ी लाठी की छाया — बिहार से संसद तक ‘बाहुबलियों’ की ही छाया!

✍️ न्यूज़ लहर विशेष रिपोर्ट | लेखक: चिरंतन विद्रोही , बेगूसराय

भारतीय लोकतंत्र की जड़ों में जब पहली बार बूथ कैप्चरिंग का ज़हर घुला, तो वह जगह कोई और नहीं, बिहार का बेगूसराय ज़िला था।

कहा जाता है कि इस ‘नवाचार’ की शुरुआत कुख्यात तस्कर  और उनके गुर्गों ने की थी, जिन्होंने कांग्रेस के पक्ष में बूथ कैप्चरिंग कर बेमतलब के चुनावी नैतिकता की धज्जियां उड़ा दीं।

जिस ‘मताधिकार’ को संविधान ने नागरिक का सबसे पवित्र अधिकार माना, उस पर पहली बार बंदूक की नली और लाठी के दम पर कब्जा कर लिया गया। यही से लोकतंत्र के अपराधीकरण का वह अध्याय शुरू हुआ, जो आज संसद और विधानसभा की दीवारों तक गूंजता है।

🔫 बूथ कैप्चरिंग से ‘माननीय’ बनने की कहानी

जैसे जैसे अपराधियों को जब यह अहसास हुआ कि वे बूथ लूटकर किसी को विधायक बना सकते हैं, तो सवाल उठा — “खुद क्यों नहीं?”

रात के अंधेरे में अपराध, दिन में कंबल वितरण और विवाह में दान — यही फार्मूला बना

➡️ अपराधी से रॉबिन हुड

➡️ रॉबिन हुड से जन नेता

➡️ और अंततः माननीय विधायक/सांसद

पटना सहरसा, गोपालगंज, आरा, बक्सर, दरभंगा, मुंगेर, और छपरा जैसे कई जिले इस चलन के गवाह बने अब तो पूरा राज्य क्या देश भी इसकी चपेट में है।

📜 जब मुख्यमंत्री ने ही दी मान्यता

1980 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने कई ऐसे “कुख्यात” विधायकों को कांग्रेस पार्टी में बाकायदा शामिल किया और उन्हें अगली बार टिकट भी थमाया।

सूत्र बताते हैं कि 1985 के आसपास संयुक्त बिहार विधानसभा में ऐसे 10 से अधिक “दागी विधायकों” की उपस्थिति थी।ऐसे कुछ लोग बिहार सरकार में मंत्री भी बने और उनके वंशज अभी भी राजनीति में हैं विधायक या सांसद हैं।

🛡️ जब ‘सामाजिक न्याय’ का अर्थ बदल गया

रामविलास पासवान, जो खुद एक प्रतिष्ठित दलित नेता माने जाते थे, ने भी इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया।

उन्होंने 1996 में मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर और वैशाली जैसे क्षेत्रों में खुले मंच से ऐलान किया कि “हम बाघ के सामने बकरी को नहीं खड़ा सकते”

इस कथन ने कई ऐसे ‘तथाकथित बाहुबली’ नेताओं को सामाजिक और राजनीतिक वैधता दे दी।

🧾 संसद की गवाही: बाहुबली अब ‘लॉ मेकर’

आज के आंकड़े खुद बोलते हैं:

2024 के लोकसभा चुनावों में 233 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं

इनमें से 113 पर गंभीर अपराध जैसे हत्या, बलात्कार, अपहरण, और दंगे के आरोप है।

बिहार विधानसभा में लगभग 38% विधायक आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं।

🧭 लोकतंत्र पर जब अपराध ने पहन लिया झोला

बूथ लूट से लेकर वोट लूट तक — और फिर जनता की भावना लूटने तक,

भारतीय राजनीति के इस “बाहुबलीकरण” ने लोकतंत्र की आत्मा को गहरी चोट दी है।

लोकतंत्र को लहूलुहान करने वाले जब संविधान के शपथ पत्र पर हाथ रखते हैं,

तो सवाल उठता है —

“क्या हम अपराधियों

को चुनते हैं, या मजबूरी में मसीहा बनाते हैं?”

 

यह भी पढ़े

अन्य खबरे