पटना, 30 जुलाई 2025:
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में इन दिनों जो कुछ हो रहा है, वह राजनीति से ज़्यादा एक पारिवारिक ड्रामा प्रतीत होता है। तेज प्रताप यादव, जिनका नाम कभी लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर लिया जाता था, अब उसी पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिए गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह निर्णय खुद उनके पिता लालू यादव और छोटे भाई तेजस्वी यादव की सहमति से लिया गया, लेकिन तेज प्रताप अभी तक न तो अपने पिता पर सवाल उठा रहे हैं और न ही भाई तेजस्वी पर।
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इसके विपरीत, उन्होंने राजद के अंदर ‘जयचंदों’ की तलाश शुरू कर दी है — बिना नाम लिए कभी इशारों में, तो कभी खुलेआम। मनेर विधायक भाई वीरेंद्र को तो उन्होंने सीधे-सीधे ‘पार्टी का जयचंद’ करार दे दिया है। लेकिन क्या यह वास्तव में बगावत है, या फिर एक सोची-समझी स्क्रिप्ट जिसके जरिए जनता के सामने यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि परिवार में मतभेद है, जबकि अंदरखाने सबकुछ ‘मैनेज’ है?
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तेज प्रताप की रणनीति: हमला इधर करो, बचाव उधर करो
तेज प्रताप का यह रवैया कई सवाल खड़े करता है। अगर पार्टी से निकाले जाने का कारण उन्हें अनुशासनहीनता बताया गया, तो फिर वे अपने पिता और भाई से सवाल क्यों नहीं कर रहे, जिन्होंने यह कार्रवाई की? क्यों वे सिर्फ ‘चार-पांच जयचंदों’ की ही बात कर रहे हैं — वो भी बिना नाम लिए या कुछेक चुनिंदा नेताओं पर निशाना साधकर?
इसका एक स्पष्ट संकेत यही देता है कि यह सब कुछ एक सुनियोजित नाटक हो सकता है, जहां तेज प्रताप को ‘बाग़ी’ की भूमिका में पेश किया जा रहा है, लेकिन असली इरादा कुछ और है — शायद सहानुभूति बटोरने का, या फिर तेजस्वी यादव की छवि को ‘मजबूत नेतृत्वकर्ता’ के रूप में स्थापित करने का।
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भीतरघात या दिखावटी विद्रोह?
तेज प्रताप ने अपनी हालिया सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि “संविधान का सम्मान भाषणों में नहीं, आचरण में दिखना चाहिए।” यह वाक्य जितना तीखा दिखता है, उतना ही यह एक सावधानीपूर्वक रचा गया संदेश भी लगता है — जहां वह नेतृत्व पर सीधा वार करने से बचते हैं, लेकिन परोक्ष रूप से पार्टी की दिशा और नीयत पर सवाल खड़ा कर देते हैं।
यह भी गौरतलब है कि तेज प्रताप ने अब तक जिन नेताओं को ‘जयचंद’ कहा है, वे वही लोग हैं जो तेजस्वी के आसपास देखे जाते हैं। यानी असल लड़ाई कहीं ना कहीं नेतृत्व को लेकर ही है — लेकिन उसे प्रत्यक्ष रूप से स्वीकार नहीं किया जा रहा।
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पर्दे के पीछे की सच्चाई कुछ और है?
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि राजद में सिर्फ राजनीतिक उठापटक नहीं चल रही, बल्कि एक राजनीतिक रंगमंच सजाया गया है जिसमें लालू परिवार के सदस्य अपनी-अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं — कोई ‘त्यागी’, कोई ‘बागी’, और कोई ‘नेतृत्वकर्ता’।
जनता इसे नौटंकी माने या राजनीतिक रणनीति — लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजद के भीतर जो भी हो रहा है, वह सिर्फ अनुशासन या असहमति का मुद्दा नहीं है। यह शक्ति-संतुलन, छवि निर्माण और आगामी चुनावों को लेकर पारिवारिक गणित का हिस्सा है।
