Sunday, July 27, 2025
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बिहार में लालू परिवार में अंतर्कलह या साजिश? तेज प्रताप का निष्कासन और तेजस्वी का बढ़ता वर्चस्व

पटना। बिहार की सियासत में एक बार फिर से लालू प्रसाद यादव के परिवार की अंदरूनी खींचतान सुर्खियों में है। इस बार मामला सीधे-सीधे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के निष्कासन से जुड़ा है। पार्टी ने उन्हें छह वर्षों के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

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तेज प्रताप यादव बीते कुछ दिनों से अपने कथित प्रेम प्रसंग को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा में थे। निजी जीवन से जुड़ी कई आपत्तिजनक जानकारियाँ सामने आने के बाद पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचने का हवाला देते हुए यह कड़ा कदम उठाया गया है। लेकिन सूत्रों की मानें तो यह सिर्फ नैतिक अनुशासन का मामला नहीं, बल्कि परिवार के भीतर वर्चस्व की जंग का भी संकेत है।

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तेजस्वी को मिल रही खुली राह?

तेज प्रताप के निष्कासन को कई राजनीतिक विश्लेषक तेजस्वी यादव के लिए “भीतर की बाधा” समाप्त होने के रूप में देख रहे हैं। तेजस्वी पहले से ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की बागडोर संभाले हुए हैं, और अब बड़े भाई की अनुपस्थिति में उन्हें खुलकर निर्णय लेने की आज़ादी मिल जाएगी।

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वहीं, हाल ही में तेजस्वी यादव ने एक बयान में कहा कि “अन्य दलों में दामादों को मलाई बांटी जाती है”, जिसे लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। माना जा रहा है कि यह बयान अप्रत्यक्ष रूप से पारिवारिक बहनों और उनके पतियों को निशाना बनाते हुए दिया गया है, जिनकी सक्रियता हाल के वर्षों में बढ़ी है।

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बहनों की भूमिका भी घटी?

राजद के अंदरखाने की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि तेजस्वी अब अपने इर्द-गिर्द एक नया शक्ति केंद्र बना रहे हैं। पार्टी के निर्णयों में अब उनकी पकड़ और मजबूत होगी, जिससे बहनों की राजनीतिक भूमिका और हस्तक्षेप सीमित हो सकता है।

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चुनावी रणनीति में तेजस्वी की पकड़

आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी के भीतर एक स्पष्ट और केंद्रित नेतृत्व की आवश्यकता है। तेजस्वी यादव अब राजद का चेहरा और फैसला लेने वाले एकमात्र नेता के रूप में उभरते दिख रहे हैं। तेज प्रताप का निष्कासन और बहनों के पतियों पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि लालू परिवार में अब अंदरूनी संतुलन तेजस्वी के पक्ष में झुक गया है।

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सवाल बाकी हैं…

हालांकि पार्टी के इस निर्णय से कई सवाल भी उठ रहे हैं—क्या यह एक नैतिक अनुशासन का मामला था या राजनीतिक रणनीति? क्या तेज प्रताप को सार्वजनिक छवि के बहाने साइडलाइन किया गया? क्या राजद अब पूरी तरह “एक व्यक्ति आधारित नेतृत्व” की ओर बढ़ रही है?

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