Tuesday, July 2, 2024
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भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया विश्व का पहला चलंत आपदा हॉस्पिटल

Newslahar

भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया दूनियां का पहला चलंत इमरजेंसी हॉस्पिटल। 36 बक्से में पूरी अस्पताल,मात्र 8 मिनट लगेंगे सेवा शुरू करने में।

नई दिल्ली. भारतीय वैज्ञानिकों ने एक और कामयाबी हासिल कर ली है। भारतीय वैज्ञानिकों और रक्षा मंत्रालय ने प्रोजेक्ट भीष्म के तहत दुनिया का पहला चलंत आपदा अस्पताल तैयार कर लिया है। प्रोजेक्ट भीष्म के तहत बना यह मोबाइल अस्पताल पूरी तरह स्वदेशी है। इसे हेलीकॉप्टर से या सड़क मार्ग से किसी भी आपदा या इमरजेंसी वाली जगह ले जाया जा सकता है। किसी भी जगह इसके सारे मॉड्यूल पहुंचने के बाद मात्र आठ मिनट में इलाज की सुविधा सुलभ होगी। एक टास्क फोर्स इस मोबाइल हॉस्पिटल की जिम्मेदारी संभालेगी।
720 किलो वजनी यह मोबाइल अस्पताल इस तरह तैयार किया गया है कि केवल 36 बॉक्स में इसका सारा सामान आ जाता है, जिसे हेलिकॉप्टर से नीचे फेंकने पर भी बॉक्स नहीं टूटते हैं और न ही पानी का असर होता है।

36 छोटे-छोटे बॉक्स में पूरा अस्पताल

लोहे के तीन फ्रेम
प्रत्येक फ्रेम में 12 छोटे बॉक्स हैं।
36 बॉक्स में हॉस्पिटल का सारा सामान ।
तीनों फ्रेम के बीच में एक छोटा जेनरेटर लगा हुआ है।
फ्रेम के ऊपर दो स्ट्रेचर हैं जो ऑपरेशन थियेटर में बिस्तर का काम कर सकते हैं।
प्रत्येक बॉक्स के अंदर दवा, उपकरण और खाद्य सामग्री उपलब्ध है।

बॉक्स में पेन और एंटीबायोटिक किट, शॉक किट, चेस्ट इंजरी किट, एयरवे किट और ब्लीडिंग किट मौजूद।

पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले साल भीष्म प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने भीष्म टास्क फोर्स तैयार की अब यह पूरी तरह बनकर तैयार है और इसे बनाने में मात्र डेढ़ करोड़ रुपए का खर्च आया है। इस प्रोजेक्ट के प्रमुख एयर वाइस मार्शल तन्मय राय ने बताया की इसे दूसरे देशों को एक्सपोर्ट करने के मकसद से भी निर्माण किया गया है। फिलहाल तीन देशों को ऐसे मोबाइल अस्पताल निशुल्क दिए जाएंगे।
एयर वाइस मार्शल तन्मय राय ने आगे बताया कि यह एक ऐसा आपदा अस्पताल है, जिसमें ऑपरेशन थियेटर से लेकर एक्सरे और रक्त नमूनों की जांच के लिए प्रयोगशाला और वेंटिलेटर तक शामिल हैं। इसे आरोग्य मैत्री का नाम दिया है और बॉक्स को आरोग्य मैत्री क्यूब नाम दिया है। उन्होंने कहा कि भारत का आपदा अस्पताल अब तक का सबसे अनूठा मॉडल है, जिसे दूसरे देशों में निर्यात के लिए बनाया है और जो पूरी तरह सौर ऊर्जा और बैटरी पर संचालित है। अभी तक के अध्ययन बताते हैं कि किसी भी आपदा में करीब दो फीसदी लोगों को गंभीर चिकित्सा सेवा की तत्काल जरूरत पड़ती है।
प्रोजेक्ट में शामिल रहे विंग कमांडर मनीष ने बताया कि एक सामान्य व्यक्ति भी बॉक्स में मौजूद एक टैबलेट की मदद से इसे ऑपरेट कर सके। इसे चालू करने के बाद बॉक्स पर लगे क्यूआर कोड को एक गन कैमरे से स्कैन करते ही पता चल जाएगा कि अंदर क्या-क्या सामान है? उसकी उत्पादन और एक्सपायरी डेट क्या है? टैबलेट पर वीडियो भी हैं। उदाहरण के तौर पर कहीं आपदा होती है और बॉक्स में फ्रैक्चर का सामान रखा है तो डॉक्टर के आने से पहले एक सामान्य व्यक्ति भी बॉक्स को खोल पूरा सामान निकल सकता है।

 

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