Saturday, September 13, 2025
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राजनीतिक हुड़दंग के बीच सुप्रीम कोर्ट सख्त: हो-हल्ला बंद करो, वोट चोरी के सबूत दो

पटना, 24 अगस्त 2025
बिहार की सियासत इस समय मतदाता सूची निरीक्षण (SIR) को लेकर गरमाई हुई है। विपक्षी दल लोकतंत्र बचाने का नारा देकर लगातार सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पहले ही पदयात्रा निकालकर केंद्र और चुनाव आयोग पर हमला बोल चुके हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि विरोध का शोर जितना तेज है, चुनाव आयोग की मतदाता पुनः निरीक्षण प्रक्रिया में सहयोग उतना ही नगण्य है।

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विरोध की राजनीति बनाम सहयोग की जिम्मेदारी

चुनाव आयोग ने हाल ही में बिहार की मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाए। इसमें मृतक, स्थानांतरित, अनुपस्थित और डुप्लीकेट नाम शामिल थे। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) से अपील की थी कि वे हटाए गए नामों पर Form-6 और Form-7 के जरिए आपत्तियाँ दर्ज करें।
लेकिन पूरे बिहार में अब तक सिर्फ दो BLO द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई है। यह आंकड़ा बताता है कि विरोध करने वाले दल लोकतांत्रिक प्रक्रिया में खुद कितना सक्रिय हैं।

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सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश

यही निष्क्रियता अब सुप्रीम कोर्ट के रडार पर आ गई है। अदालत ने संज्ञान लेते हुए बिहार के 12 प्रमुख राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों को नोटिस जारी किया है। इनमें कांग्रेस, भाजपा, राजद, जदयू, लोजपा (रामविलास), बसपा, आप और भाकपा माले समेत अन्य दल शामिल हैं।

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कोर्ट ने कहा है—
👉 सिर्फ हो-हल्ला मचाना काफी नहीं,
👉 मतदाता सूची से हटाए गए नामों के लिए ठोस सबूत और आपत्तियाँ पेश करनी होंगी।
साथ ही, 8 सितंबर तक सभी दलों के शीर्ष पदाधिकारियों को शपथपत्र के साथ स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया है।

राजनीतिक विडंबना

यह पूरा घटनाक्रम कई अहम सवाल खड़ा करता है:

क्या विपक्ष केवल जनता के बीच माहौल बनाने तक सीमित है?

क्या लोकतंत्र की रक्षा का नारा सिर्फ आंदोलन तक ही सिमटा है?

जब सुप्रीम कोर्ट ने पारदर्शिता के लिए राजनीतिक दलों को जिम्मेदारी सौंपी है, तो उनकी निष्क्रियता क्या लोकतांत्रिक कर्तव्य से पलायन नहीं है?

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बिहार की तस्वीर साफ है—

सड़क पर हुड़दंग और नारों का शोर विपक्ष के नेताओं का मुख्य हथियार है।

जमीनी स्तर पर मतदाता सूची सुधार में उनकी भूमिका लगभग शून्य है।

सुप्रीम कोर्ट का संदेश अब बिल्कुल स्पष्ट है: सिर्फ विरोध से लोकतंत्र नहीं बचेगा, इसके लिए ठोस सबूत और कानूनी दायरे में कार्रवाई जरूरी है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि दल अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं या फिर विरोध को ही राजनीतिक रणनीति बनाए रखते हैं।

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