पटना | 29 जुलाई 2025
जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक गलियारों में ‘मुख्यमंत्री चेहरा’ को लेकर चर्चाओं और बयानों का दौर तेज़ हो गया है। अब तक किसी दल ने स्पष्ट रूप से अपने सीएम उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है, लेकिन नेताओं की बयानबाज़ी ने जातिगत समीकरणों की राजनीति को फिर से ज़िंदा कर दिया है।
🔹 चिराग पासवान का बयान: सहयोगी या संकेत देने वाले रणनीतिकार?
लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने कहा है कि यदि NDA को जीत मिलती है, तो नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद संभालेंगे। इस बयान के कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं:
- यह भाजपा-जेडीयू गठबंधन के भीतर भ्रम की स्थिति को उभारने का प्रयास हो सकता है।
- भाजपा को यह सोचने पर मजबूर किया जा रहा है कि नीतीश अब भी जनस्वीकार्य हैं या नहीं।
- चिराग खुद को निर्णायक भूमिका में स्थापित करने की रणनीति पर चल रहे हैं।
🔹 तेजस्वी यादव का दांव: जाति कार्ड और भाजपा पर सीधा प्रहार
राजद नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि भाजपा अगली बार मंगल पांडे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना सकती है, जो एक उच्च जाति से आते हैं। उनका यह बयान कई उद्देश्यों को पूरा करता है:
- पिछड़े और अतिपिछड़े वर्गों को संदेश देना कि भाजपा सामाजिक संतुलन नहीं बनाएगी।
- जातीय ध्रुवीकरण के ज़रिए महागठबंधन के पक्ष में गोलबंदी करना।
🔹 भ्रम की राजनीति: मुख्यमंत्री कौन, यह सवाल नहीं, बल्कि एक चाल है
चाहे भाजपा हो, राजद हो या लोजपा — किसी भी दल ने अब तक स्पष्ट रूप से अपने सीएम चेहरे की घोषणा नहीं की है। परंतु बयानों के ज़रिए मतदाताओं के बीच यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि भाजपा किसी “उच्च जाति” के नेता को सीएम बना सकती है। इसका उद्देश्य वोटबैंक को प्रभावित करना और विपक्ष के भीतर दरार पैदा करना है।
🔹 जाति कार्ड की वापसी: विकास की बजाय जाति की राजनीति केंद्र में
बिहार की राजनीति में जाति आधारित रणनीति कोई नई बात नहीं है। लेकिन चुनाव से पहले इस तरह के बयान यह स्पष्ट करते हैं कि जाति कार्ड फिर से सबसे बड़ा चुनावी हथियार बनने जा रहा है। नेताओं को शायद खुद न पता हो कि सीएम कौन बनेगा, लेकिन वे यह ज़रूर जानते हैं कि “जातीय ध्रुवीकरण” ही असली चाल है।
🔚 निष्कर्ष
बिहार चुनाव 2025 की पूर्व बेला में नेताओं की बयानबाज़ी यह साबित कर रही है कि चुनावी रणनीति में अब भी विकास की बजाय जातिगत समीकरण और भ्रम फैलाने की राजनीति हावी है। मतदाता के लिए यह एक चेतावनी है कि अगली बार वोट डालते समय सिर्फ चेहरा नहीं, नियत और नीति पर भी ध्यान देना होगा।