अजय कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज़ हो चुकी हैं। मुख्य मुकाबला जहां NDA और INDIA गठबंधन के बीच माना जा रहा है, वहीं एक नए खिलाड़ी जन सुराज ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। पूर्व चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज के सूत्रधार पिछले तीन वर्षों से सक्रिय हैं। 2022 से शुरू हुई पदयात्रा, उपचुनाव में रिहर्सल और अब लगातार बदलाव सभाओं के जरिये संगठन को मज़बूत करने की कवायद जारी है।
जन सुराज ने हर विधानसभा क्षेत्र में 40 हज़ार परिवार लाभ कार्ड बनाने का लक्ष्य तय किया है, ताकि चुनाव चिह्न को घर–घर तक पहुँचाया जा सके। इस बीच, विपक्षी दलों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जन सुराज असल में भाजपा को परोक्ष मदद कर रही है। आरोप इसलिए भी लगते हैं क्योंकि पार्टी के भाषणों का केंद्र तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार होते हैं, जबकि भाजपा पर सीधा हमला कम दिखाई देता है।
जमीनी समीकरण क्या कहते हैं?
विश्लेषकों का मानना है कि राजद और भाजपा—दोनों के कोर वोटर किसी भी हाल में खेमे से बाहर नहीं जाएंगे। राजद विरोधी वोटरों को चाहे जन सुराज विकल्प दे, अंततः वे NDA को ही वोट करने की संभावना रखते हैं। दूसरी ओर, NDA समर्थक मतदाता का एक हिस्सा जो नीतीश कुमार से नाराज़ है, उसे जन सुराज अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। यही वोट बैंक चुनावी तस्वीर बदल सकता है।
विश्लेषकों की राय
राजनीतिक जानकार इसे “चिराग मॉडल का संशोधित संस्करण” बता रहे हैं। उनका कहना है कि यदि एंटी–इनकंबैंसी और नीतीश विरोधी वोट, जो सामान्यत: INDIA गठबंधन को जा सकता था, जन सुराज के कारण बंट गया, तो भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है। ऐसे हालात में नीतीश कुमार दूसरे नंबर पर चले जाएंगे और भाजपा के लिए मुख्यमंत्री पद का रास्ता साफ हो सकता है।
भीतरखाने चर्चा
भाजपा ने अब तक अपने पत्ते खुले तौर पर नहीं खोले हैं। हालांकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस बार पार्टी किसी राजपूत चेहरे को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे कर सकती है।
