पटना, 12 अगस्त — बिहार सरकार और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (BSPCB) द्वारा सिंगल-यूज़ प्लास्टिक (SUP) पर लगाए गए प्रतिबंध के तीन साल बाद भी राजधानी पटना में इसका खुलेआम इस्तेमाल जारी है। गली-मोहल्लों से लेकर बड़े बाजारों तक, दुकानदार अब भी बैन पतले प्लास्टिक बैग, स्ट्रॉ और थर्मोकोल जैसे प्रतिबंधित उत्पादों का बेझिझक उपयोग कर रहे हैं।
बैन कब और क्यों लगाया गया था
1 जुलाई 2022 से प्रभावी इस बैन का उद्देश्य पर्यावरण प्रदूषण घटाना, नालों में जाम की समस्या को रोकना और पशु-स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरों को कम करना था। केंद्र और राज्य स्तर पर यह कदम ‘प्लास्टिक-फ्री इंडिया’ मिशन के तहत उठाया गया था।
बाजारों में अब भी प्लास्टिक का बोलबाला
कंकड़बाग, गांधी मैदान, सब्जीबाग, और बोरिंग रोड जैसे प्रमुख बाजारों में प्लास्टिक थैले अब भी आम नज़र आते हैं। फल-सब्जी विक्रेता, किराना दुकानदार और स्ट्रीट वेंडर ग्राहक को सामान प्लास्टिक में ही पैक कर रहे हैं। कई दुकानदार मानते हैं कि “कपड़े और पेपर बैग महंगे और कम उपलब्ध हैं, इसलिए मजबूरी में प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं।”
प्रवर्तन में ढिलाई
नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की चेकिंग कार्यवाही सीमित या फिर ना के बराबर रही है। छिटपुट और खानापूर्ति करवाई, छापेमारी और जुर्माने के अलावा कोई निरंतर निगरानी तंत्र नहीं बनाया गया। नतीजा, व्यापारी बिना डरे प्रतिबंधित प्लास्टिक का इस्तेमाल करते रहे।
मुख्य कारण
इसका मुख्य कारण जहां एक तरफ भ्रष्ट और लापरवाह पटना प्रशासन है वहीं इसके और भी कारण है जो निम्नलिखित है
विकल्पों की कमी: कपड़े और पेपर बैग की लागत ज्यादा, सप्लाई सीमित।
जन-व्यवहार: ग्राहक अक्सर अपनी थैली घर से नहीं लाते, जिससे दुकानदार प्लास्टिक देने को मजबूर होते हैं।
बुनियादी ढांचे की कमी: कचरे का अलग-अलग संग्रह और रिसाइक्लिंग व्यवस्था कमजोर।
असर
जल निकासी बाधित: नालों में प्लास्टिक फंसने से जलजमाव की समस्या बढ़ती है।
स्वास्थ्य पर खतरा: प्लास्टिक से निकलने वाले रसायन मिट्टी, पानी और भोजन को दूषित करते हैं।
पशु-जीवन प्रभावित: खुले में फेंके गए प्लास्टिक को खा लेने से मवेशियों की मौत के मामले बढ़ रहे हैं।