Friday, September 12, 2025
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पटना की मेयर सीता साहू को कारण बताओ नोटिस: अधिकार और कर्तव्यों पर सवाल

पटना, बिहार – पटना की मेयर सीता साहू को नगर विकास विभाग ने बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया है। यह नोटिस मेयर पर विभागीय आदेशों की अवहेलना और नियमों के खिलाफ काम करने के आरोप में जारी किया गया है। उन्हें इस नोटिस का जवाब देने के लिए सात दिनों का समय दिया गया है, और अगर उनका जवाब संतोषजनक नहीं पाया जाता है, तो उन पर धारा 68(2) के तहत कार्रवाई की जाएगी, जिससे उनके अधिकार और शक्तियां छीनी जा सकती हैं।

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आरोपों का मूल और जांच प्रक्रिया

यह मामला तब सामने आया जब नगर आयुक्त अनिमेष पराशर ने विभाग को मेयर के खिलाफ अनियमितताओं की शिकायत करते हुए एक पत्र लिखा। इसके बाद विभाग ने दो सदस्यीय जांच समिति का गठन किया। जांच के दौरान, पार्षद विनय कुमार पप्पू, गीता देवी, डॉ. आशीष सिन्हा और डॉ. इंद्रदीप चंद्रवंशी समेत कई अन्य पार्षदों ने भी मेयर के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराईं।

नोटिस में मुख्य रूप से तीन प्रस्तावों (संख्या 123, 124 और 125) का जिक्र किया गया है, जिन्हें विभागीय रोक के बावजूद 11 जुलाई को दोबारा निगम बोर्ड की बैठक में लाया गया और पारित कराने की कोशिश की गई। इन प्रस्तावों में अनियमितताएं पाई गई हैं:

प्रस्ताव संख्या 123: इस प्रस्ताव में यह तय किया गया था कि पटना नगर निगम की कोई भी योजना सशक्त स्थायी समिति और निगम बोर्ड की मंजूरी के बिना नहीं चलाई जाएगी।

प्रस्ताव संख्या 124: यह प्रस्ताव “अमेजिंग इंडिया” जैसी योजनाओं को सशक्त स्थायी समिति और निगम बोर्ड की मंजूरी के बिना रद्द नहीं करने से संबंधित था।

प्रस्ताव संख्या 125: इस प्रस्ताव में निगम के अधिवक्ता प्रसून सिन्हा को सेवा से हटाकर अधिवक्ताओं का एक नया पैनल बनाने की बात कही गई थी।

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कानूनी और प्रशासनिक प्रभाव

नोटिस में कहा गया है कि इन प्रस्तावों को विभागीय रोक के बावजूद लाना अवैध और आदेशों की अवहेलना है। इसके अलावा, मेयर पर निगम बोर्ड और सशक्त स्थायी समिति की बैठकें नियमित रूप से नहीं बुलाने का भी आरोप है। नोटिस में यह भी उल्लेख है कि बोर्ड की 8वीं बैठक की आंशिक फाइल 11 फरवरी को बिना कार्यालय की जानकारी के खोली गई, जो संदेह पैदा करती है।

यदि मेयर सीता साहू इन आरोपों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाती हैं, तो धारा 68(2) के प्रावधानों के तहत उनके पद से अधिकार छीने जा सकते हैं। इस धारा के अनुसार, राज्य सरकार उनके अधिकार और शक्तियां किसी अन्य उपयुक्त व्यक्ति को दे सकती है, जो आमतौर पर उपमहापौर होते हैं।

इस घटना से पटना नगर निगम के कामकाज में प्रशासनिक खींचतान और पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। यह देखना होगा कि मेयर अपने जवाब में इन आरोपों का कैसे खंडन करती हैं और क्या यह मामला उनके राजनीतिक भविष्य को प्रभावित करेगा।

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