पटना | न्यूज़ लहर
बिहार में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (RTI Act) का अनुपालन पूरी तरह से खोखला साबित हो रहा है। राज्य के लगभग हर विभाग में आरटीआई आवेदन देने के बावजूद तय समय सीमा के भीतर सूचना नहीं दी जाती है। नियम-कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए अधिकारी मनमानी पर उतर आते हैं और पारदर्शिता के इस कानूनी अधिकार को अप्रासंगिक बना चुके हैं।
न्यूज़ लहर की जांच में यह तथ्य सामने आया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दायर लगभग हर आवेदन का जवाब 30 दिनों की तय सीमा के भीतर नहीं मिलता। यदि आवेदक प्रथम अपील दायर करता है तो विभाग की ओर से प्रथम आवेदन का जवाब मिलता है और एक औपचारिक पत्र भेजकर कहा जाता है कि “यह जानकारी हमारे पास नहीं है, इसे संबंधित विभाग को भेजा जा रहा है।” लेकिन वहां भी वही स्थिति रहती है — आवेदन महीनों तक धूल फांकता रहता है और कोई जवाब नहीं दिया जाता।
आवेदकों को मिलती है मनमानी और मनगढ़ंत दलीलें
जब आवेदक खुद विभागों के चक्कर लगाने पर मजबूर होता है, तो संबंधित अधिकारी मनमाने जवाब देकर मामले से पल्ला झाड़ लेते हैं। सबसे गंभीर स्थिति NHAI (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) और बिहार के राजस्व विभाग में देखी गई है। यहाँ अधिकारियों द्वारा आवेदकों को अनेक मनगढ़ंत नियम-कायदे बताकर सूचना देने से ही साफ इनकार कर दिया जाता है।
सरकार और प्रशासन पर गंभीर सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति सिर्फ बिहार की भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था का परिणाम नहीं है बल्कि इसके लिए सीधे तौर पर नीतीश कुमार सरकार भी जिम्मेदार है, जिसने आरटीआई जैसे पारदर्शिता सुनिश्चित करने वाले कानून के अनुपालन को गंभीरता से नहीं लिया।
आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 7(1) में स्पष्ट प्रावधान है कि आवेदन पर 30 दिनों के भीतर जवाब देना अनिवार्य है, लेकिन बिहार में यह प्रावधान केवल कागज़ों में सीमित है।
पारदर्शिता की बजाय गोपनीयता की संस्कृति
आरटीआई का मूल उद्देश्य शासन-प्रशासन को पारदर्शी बनाना था, लेकिन बिहार में विभागों ने इसे एक बोझ समझकर गोपनीयता और मनमानी की संस्कृति को बढ़ावा दे दिया है। परिणामस्वरूप आम जनता अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रही है।
यह खबर बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था और सरकार की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करती है।