बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर उठे विवाद ने अब एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का रूप ले लिया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने आज पटना स्थित अपने आवास पर इंडिया महागठबंधन के नेताओं के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन कर चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवालों की झड़ी लगा दी।
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चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल
तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह बार-बार दिशा-निर्देश बदलकर जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है। 24 जून को जारी अधिसूचना और बाद में प्रकाशित विज्ञापन में विरोधाभास को लेकर उन्होंने कहा कि आयोग स्वयं असमंजस की स्थिति में है और मतदाताओं को जानबूझकर उलझा रहा है।
तेजस्वी का आरोप है कि आयोग ने नए मतदाताओं के लिए फार्म-6 में आधार, राशन कार्ड और मनरेगा कार्ड को मान्य बताया है, लेकिन बाद में इनकी मान्यता को खारिज कर 11 दस्तावेज अनिवार्य कर दिए, जो खासकर गरीब और वंचित तबकों के लिए जुटाना बेहद कठिन है।
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चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर मांग
नेता प्रतिपक्ष ने मांग की कि आयोग को विधानसभा वार पुनरीक्षण की प्रगति की विवरणी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी चाहिए। साथ ही, एक लाख से चार लाख तक के स्वयंसेवक नियुक्त करने की प्रक्रिया, उनका चयन मानदंड और उनकी स्थिति (सरकारी/गैर-सरकारी) स्पष्ट होनी चाहिए।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह प्रक्रिया नहीं रोकी गई तो अंततः आयोग मनमानी कर मतदाताओं के नाम काट सकता है।
9 जुलाई को चक्का जाम आंदोलन में कांग्रेस और अन्य दल भी शामिल
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने बताया कि पार्टी राहुल गांधी की अगुवाई में इस आंदोलन में शामिल होगी। उन्होंने सवाल उठाया कि जब जनवरी 2025 में वोटर लिस्ट को फाइनल किया गया था, तब अब पुनरीक्षण की जरूरत क्यों महसूस हुई। उन्होंने ERO (Electoral Registration Officer) को अत्यधिक अधिकार दिए जाने पर भी आपत्ति जताई, जो निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं।
चक्का जाम आंदोलन पटना के आयकर गोलंबर से वीरचंद पटेल पथ होते हुए चुनाव आयोग कार्यालय तक होगा।
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शिक्षकों की ड्यूटी और शिक्षा पर असर
वीआईपी पार्टी के नेता मुकेश सहनी ने सवाल उठाया कि शिक्षकों को वोटर पुनरीक्षण कार्य में लगा दिया गया है जिससे शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है। उन्होंने इसे आम लोगों के लिए परेशानी का कारण बताया।
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वाम दलों का सीधा आरोप: ‘वोटबंदी की साजिश’
भाकपा माले के कॉमरेड कुणाल और सीपीआई के रामबाबू ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि यह पूरी प्रक्रिया “गरीबों की वोटबंदी” का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि यह भाजपा-एनडीए के पक्ष में वोटों में हेरफेर का एक हथकंडा है।
सीपीआईएम के विधायक अवधेश कुमार ने इसे एक “राजनीतिक साजिश” बताते हुए कहा कि सर्वे रिपोर्ट में तेजस्वी यादव के प्रति जनता का विश्वास देखकर यह प्रक्रिया शुरू की गई है।
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चुनाव आयोग की साख पर चोट
इस प्रेस वार्ता ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में ला दिया है। जहां विपक्ष इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बता रहा है, वहीं सत्ता पक्ष की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है।