पटना, 9 जुलाई 2025
बिहार की धरती पर एक बार फिर लोकतंत्र को बचाने का अलार्म बजाया गया—इस बार वोटर लिस्ट के बहाने। कांग्रेस, राजद और उनके सहयोगी दलों ने “मतदाता पुनरीक्षण” को तानाशाही करार देते हुए बिहार बंद का बिगुल बजा दिया। हाँ, वही वोटर लिस्ट जिसकी सफाई हर चुनाव से पहले की जाती है… लेकिन इस बार लोकतंत्र खतरे में है! क्यों? क्योंकि चुनाव आयोग ने कहा — “अपना फॉर्म भरिए, अपने कागज़ दीजिए।”
बिहार: मतदाता पुनरीक्षण अभियान, “एक तरफ विपक्ष का विरोध, दूसरी तरफ प्रशासन की सजगता
तेजस्वी बोले: लोकतंत्र डेंजर में है!
तेजस्वी यादव ने कहा कि “अब गुजरात के दो लोग तय करेंगे कौन वोट देगा।” अब तक तो हम यही समझते थे कि यह काम बूथ लेवल ऑफिसर करते हैं, लेकिन चलिए, अब उन्हें भी छुट्टी दे दीजिए। राज ठाकरे को महाराष्ट्र में हिंदी बोलने से आपत्ति थी, यहां लोकतंत्र को वोटर लिस्ट से ही आपत्ति हो गई।
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राहुल गांधी की पदयात्रा से पटना तक
राहुल गांधी जिनकी ‘न्याय यात्रा’ अब ‘सूची न्याय यात्रा’ बनती दिख रही है, उन्होंने हाथ में संविधान लेकर कहा कि हम संविधान बचाएंगे। शायद संविधान भी सोच में पड़ गया होगा कि “भाई, इतना प्रेम पहले क्यों नहीं दिखाया?”
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मतदाता सूची की शुद्धि, लेकिन विरोध क्यों?
चुनाव आयोग द्वारा चलाया गया विशेष पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision) का उद्देश्य था — मृतकों के नाम हटाना, डुप्लीकेट हटाना, और अस्थायी प्रवासियों की स्थिति स्पष्ट करना। अब इसमें किसे आपत्ति होनी चाहिए?
लेकिन यदि वोटर सूची से ‘काल्पनिक मतदाता’ हटेंगे तो कुछ लोगों की “काल्पनिक सीटें” भी खतरे में पड़ सकती हैं।
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बंद सफल रहा… ट्विटर पर!
विपक्ष का दावा है कि बिहार बंद ऐतिहासिक रूप से सफल रहा। सचमुच! ट्विटर पर ‘#BiharBandh’ ट्रेंड कर गया। सड़कों पर दुकानें खुली थीं, बच्चे स्कूल में और लोग ऑफिस में… मगर लोकतंत्र ट्विटर पर सचमुच ‘बंद’ नज़र आया।
लोकतंत्र की बहाली या राजनीतिक ब्रांडिंग?
वास्तविकता यह है कि मतदाता सूची को साफ-सुथरा रखना हर लोकतंत्र की बुनियादी ज़रूरत है। यह वही अभियान है जिसमें आम जनता से कहा गया — “आइए, अपनी पहचान सत्यापित कीजिए।” अब इसमें डर किसे लग रहा है?
लोकतंत्र की चिंता, लेकिन टाइमिंग गजब!
जिस समय पर विपक्ष बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों से ध्यान हटाकर वोटर लिस्ट की ओर दौड़ा है, वह भी अपने आप में एक रणनीतिक करिश्मा है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए अब न तो संसद चाहिए, न अदालत… बस एक ट्रेंडिंग हैशटैग और कुछ कैमरों की फ्लैश।