बिहार समेत पूरे उत्तर भारत में मौसम का मिजाज लगातार असामान्य होता जा रहा है। इन दिनों बिहार के अधिकांश जिलों में उमस भरी गर्मी लोगों को बेहाल कर रही है। राजधानी पटना, गया, भागलपुर और दरभंगा जैसे शहरों में हल्की बूंदाबांदी के बावजूद उमस बनी हुई है, जो राहत देने के बजाय वातावरण को और असहज बना रही है।
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विशेषज्ञ इसे ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण असंतुलन का स्थानीय प्रभाव बता रहे हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों के पिघलने, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, और शहरीकरण की तेज रफ्तार ने स्थानीय जलवायु चक्र को बिगाड़ दिया है।
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ग्लोबल इम्पैक्ट का स्थानीय असर
दक्षिण एशिया में मानसून पैटर्न अस्थिर हो चुके हैं। कभी अत्यधिक वर्षा, तो कभी लंबी शुष्क अवधि।
वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की अधिकता ने सतह के तापमान को बढ़ा दिया है, जिससे नमी के साथ-साथ हीट इंडेक्स भी खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है।
बिहार जैसे राज्य, जहां पहले मानसून अपेक्षाकृत संतुलित रहता था, अब वहां पर बरसात का वितरण असमान हो गया है।
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स्थानीय जीवन पर असर
उमस भरी गर्मी के कारण बीमारियों का खतरा, खासकर हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और स्किन इंफेक्शन बढ़ा है।
किसानों को भी खेती के समय और फसल चक्र को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है।
बिजली की अधिक खपत के चलते लोड शेडिंग और बिजली संकट भी गहराता जा रहा है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि स्थानीय और वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कटौती, हरित क्षेत्र संरक्षण, और पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा नहीं दिया गया, तो आने वाले वर्षों में ऐसे मौसमीय संकट और गंभीर होंगे।