Monday, July 28, 2025
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घर के बुजुर्ग के जीवन के अंतिम मोड़ पर भावनात्मक लगाव चाहते है! ICU नहीं

आज के आधुनिक युग में एक नई परंपरा जन्म ले चुकी है — जैसे ही घर के बुजुर्ग बीमार पड़ते हैं, तुरंत एम्बुलेंस बुलाई जाती है, आर्थिक स्थिति के अनुसार किसी बड़े निजी अस्पताल में भर्ती कर दिया जाता है। ICU में पहुंचते ही डॉक्टर की हर बात ब्रह्मवाक्य बन जाती है।

परिजनों का पहला वाक्य होता है:
“डॉक्टर साहब, पैसे की चिंता मत करिए, बस इनको ठीक कर दीजिए।”

यह कहकर हम न केवल डॉक्टर को खुली छूट दे देते हैं, बल्कि अनजाने में अपने बुजुर्ग को एक “क्लिनिकल प्रयोगशाला” बना देते हैं — जहां रोज नई-नई जांचें, नई दवाएं, अलग-अलग विशेषज्ञों की राय, और हर दिन एक नया निदान सामने आता है।

क्या यह वास्तव में इलाज है?

या यह एक व्यावसायिक प्रक्रिया है, जिसमें मानवीयता से ज़्यादा मुनाफा देखा जाता है?

80 वर्ष की उम्र में, एक वृद्ध शरीर — जो अब शांति चाहता है, सुकून चाहता है, अपने लोगों की गोद में विदा लेना चाहता है — उसे मशीनों में जकड़कर, ट्यूबों और सुइयों से चुभोकर ICU की चारदीवारी में बंद कर देना क्या सेवा है या संवेदनहीनता?

धर्म क्या कहता है?

हमारा सनातन धर्म कहता है कि मृत्यु संतोषजनक, शांति और आत्मतृप्ति की अवस्था में होनी चाहिए।
यह वह समय होता है जब आत्मा शरीर से विदा लेती है। और विदा कैसी होनी चाहिए?
— अपनों के बीच, अपने घर में, उन चेहरों के साथ जिन्हें वो वर्षों से देखती आई है।
— अंतिम क्षणों में कोई मनपसंद व्यंजन का कौर, कोई प्रियजन का हाथ थामे हुए… यही होती है मुक्ति की अनुभूति।

ICU में क्या मिलता है?

– मशीनों की बीप की आवाज़ें
– अपरिचित डॉक्टरों के गंभीर चेहरे
– शरीर में हर तरफ ट्यूब और सुई
– न कोई अपना, न कोई स्पर्श
– और अंततः… निर्जीव शरीर की वापसी।

विकल्प है — सेवा।

यदि आपके पास संसाधन हैं, तो: – एक अच्छी नर्स रखें
– घर में ऑक्सीजन, दवाइयां, उपकरणों की व्यवस्था करें
– डॉक्टर से घर पर परामर्श लें
– सबसे जरूरी — उनके मन को शांति दें, उनकी इच्छाओं का सम्मान करें

आपके शब्द, आपका साथ, उनका आत्मबल और आत्मसंतोष बनाएगा। यही अंतिम सेवा है, यही श्रद्धा है।

बुजुर्ग कोई मेडिकल केस नहीं हैं। वे संवेदनाओं का सागर हैं, जिनकी हर लहर हमारे संस्कारों से बनी है।
अंतिम समय में उनका हाथ पकड़िए, आंखों में आंखें डालिए और कहिए —
“हम हैं, माई-बाबूजी, आपके साथ… अंत तक।”

ध्यान रखिए –  शरीर से पहले आत्मा को समझिए।
ICU नहीं, अपने हृदय का दरवाज़ा खोलिए।
वहीं सच्चा स्वर्ग है.

“बुजुर्गों को चूहा मत बनाइए,
उन्हें देवता समझकर सेवा कीजिए…”

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