Wednesday, March 12, 2025
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बिहार: किसानों से सब्सिडी के नाम पर ठगी, अफसरशाही की मौज

केंद्र के साथ बिहार सरकार द्वारा किसान की आय में बढ़ोतरी के लिए निरंतर नई योजनाएं लागू की जाती रहीं है। लेकिन इन योजनाओं के लाभार्थी का लिस्ट देखा जाए तो इसमें ज्यादातर उन्हीं लोगों का नाम होगा जो स्थानीय स्तर पर ब्लॉक के कृषि अधिकारियों के नजदीकी होते हैं।

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आमजन या फिर किसान को राज्य सरकार की योजनाओं की या तो जानकारी नहीं होती है या फिर उन्हें ये योजनाओं नकारा और कृषि विभाग के अधिकारियों को लाभान्वित करने वाला लगता है। इन्हीं कारणों से निरंतर प्रचार प्रसार करने के बावजूद बिहार के ज़्यादातर किसान केंद्र व राज्य सरकार की कृषि से संबंधित सब्सिडी युक्त योजनाओं से कन्नी काटते दिखते हैं। और परिणाम स्वरुप यहां की अनेक योजनाओं की राशि खर्च नहीं होने के कारण केंद्र में वापस चली जाती है।

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प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार किसानों के लिए मिट्टी जांच से लेकर रोपन,बीज, खाद, सिंचाई कटाई के साथ अनाज घर तक पहुंचाने की अनेक सब्सिडी युक्त योजनाएं हैं। लेकिन अनेक किसानों के अनुसार सरकार की योजना में अनेक पेच है सरकार इन योजनाओं पर सब्सिडी देने की बात तो करती है। लेकिन इन योजनाओं को पाने के लिए कोई किसान प्रयास करता है तो उस हर कदम पर बाधाओ का सामना करना पड़ता हैं।

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और अनेक परेशानियों का सामना करने के बाद जब सरकारी योजनाएं उनके हाथ लगती है तो उन्हें पता चलता है कि जितना पैसा सरकारी योजनाओं को पाने के लिए खर्च करना है उतने में तो वह किसान खुद ही उसे योजना को अपने खेत में कार्यान्वित कर सकता है।

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उनके अनुसार परेशानी की शुरूआत इन योजनाओं को पाने के लिए आवेदन के दौरान आवश्यक कागज पत्र से हो जाती है। पहले कदम पर ही किसान को अपने कागजात ठीक करवाने को ब्लॉक कर्मचारी से लेकर यहां के उच्च अधिकारीयो तक के कार्यालय का चक्कर लगाने पड़ते है। इन कार्यालयों में बिना जेब गरम किए कोई काम होता है इसका उदाहरण शायद ही मिले।

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केंद्र और राज्य सरकार की सभी योजनाओ ऑनलाइन हैं। और बिड़ले ही किसान मिलेंगे जिनके घर पर कंप्यूटर हो। ऐसे में किसान को इसके लिए पैसे खर्च करने पड़ते है। आवेदन करने के बाद फाइल ब्लॉक और फिर जिला स्तर के कृषि अधिकारियों के पास जाती है। और फिर योजना पास हो जाने की भी जानकारी किसान को मिलती है।

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सबसे बड़ी परेशानी किसानों को योजना पास हो जाने के बाद ही होती है। क्योंकि किसानों को कोई भी योजना का सीधा लाभार्थी नहीं बनाया जाता है। इसमें राज्य सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने विभिन्न एजेंसियां नियुक्त कर रखी है। योजना पास होने पर संबंधित एजेंसी उक्त किसान को संपर्क करता है। और उसे योजना के बारे में बताता है। और आवश्यक खानापूर्ति के लिए मिलता है।

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एक किसान के अनुसार राज्य सरकार की टिंपक सिंचाई की एक एकड़ के लिए ८० हजार रुपए की योजना है। जिसमें सामान्य वर्ग से आने वाले किसान को ७५ प्रतिशत तक सरकारी सब्सिडी का प्रावधान है।

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लेकिन इस योजना को लगाने के लिए संबंधित एजेंसी के लोग जब किसान से मिलता है तो किसान को सबसे पहले पूरी योजना का १८ तो कोई २८ प्रतिशत जीएसटी भरने को कहता है। सब्सिडी के बाद की रकम और ये कुल मिलाकर खर्च ३०- ४० हजार हो जाता है। किसान के अनुसार एक एकड़ के लिए अगर कोई किसान खुद के खर्च पर टिंपक सिंचाई शुरू करे तो उसमें भी पूरा खर्च ३० – ४० हजार ही आता है।

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ऐसे में सरकारी सब्सिडी युक्त योजनाएं बिहार के कृषि विभाग के अधिकारियों की कमीशनखोरी के अलावा और कुछ नहीं है। इससे ना तों बिहार के किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी। ना ही यहां के किसानों की हालत में सुधार होगा।

 

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