SIR पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बीच बिहार में मतदाता पुनरीक्षण अभियान की अनिवार्यता और औचित्य फिर से रेखांकित
बिहार में चल रहे विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण अभियान (SIR) को लेकर जारी विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। जहां शीर्ष अदालत ने इस अभियान को रोकने से इनकार किया, वहीं चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे आम दस्तावेज़ों को SIR के तहत पहचान प्रमाण के रूप में मान्य करने पर विचार करे।
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इस कानूनी बहस के केंद्र में एक सवाल उभरकर सामने आया है
क्या बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण वास्तव में आवश्यक है?
विश्लेषकों और सुरक्षा विशेषज्ञों की मानें तो इसका उत्तर है – हां, अत्यंत आवश्यक।
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शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से यह स्पष्ट रूप से पूछा कि विधानसभा चुनाव से महज़ चार महीने पहले इतनी बड़ी प्रक्रिया क्यों शुरू की गई। वहीं यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकता सत्यापन गृह मंत्रालय का विषय है, लेकिन मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है।
कोर्ट ने ECI से यह भी कहा कि वह आम लोगों द्वारा प्रयुक्त आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को SIR के लिए मान्य दस्तावेज़ों में शामिल करने पर “गंभीर विचार” करे, और अस्वीकार करने की स्थिति में उचित कारण दे।
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बिहार में SIR क्यों अत्यावश्यक है?
1️⃣ फर्जी और दोहरी प्रविष्टियों की संभावनाएं
बिहार में वर्षों से यह संदेह रहा है कि सीमावर्ती ज़िलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या शरणार्थियों के नाम अवैध रूप से मतदाता सूची में जोड़े गए हैं। इसके अतिरिक्त कई प्रवासी मज़दूर जो बिहार में रहते हैं, उनका नाम अन्य राज्यों की मतदाता सूची में भी दर्ज है — जो चुनाव आयोग के नियमों के खिलाफ है। नागरिक केवल एक ही विधानसभा क्षेत्र में मतदान का अधिकार रखता है।
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2️⃣ प्रवासी श्रमिकों की दोहरी प्रविष्टि हटाना जरूरी
बिहार से लाखों लोग रोज़गार के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में प्रवास करते हैं। अनेक मामलों में उनका नाम बिहार और जिस राज्य में वे काम करते हैं, दोनों जगहों पर दर्ज है। यह चुनाव प्रणाली की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
3️⃣ लोकतंत्र की नींव – शुद्ध मतदाता सूची
फर्जी मतदाताओं, दोहरे नाम, मृत मतदाताओं या स्थानांतरित नागरिकों की प्रविष्टियों के साथ कोई भी चुनाव पारदर्शी नहीं हो सकता। इसलिए यह विशेष पुनरीक्षण अभियान चुनावी पारदर्शिता के लिए ज़रूरी आधार है।
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SIR पर आपत्ति क्यों और समाधान क्या?
विपक्षी दलों की आपत्ति इस बात पर केंद्रित है कि दस्तावेज़ों की सूची अस्पष्ट है, और जिन लोगों के पास अपेक्षित दस्तावेज़ नहीं हैं — उनके नाम हटाए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ध्यान दिया और ECI को “व्यापकता और सहजता” अपनाने की सलाह दी।
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समाधान यह है कि चुनाव आयोग SIR को जन-जागृति अभियान के रूप में चलाए, जिसमें एक तरफ फर्जी और अवैध प्रविष्टियाँ हटें और दूसरी तरफ वास्तविक पात्र मतदाता, विशेषकर गरीब, प्रवासी और ग्रामीण वर्ग की पात्रता सुनिश्चित हो।
सुप्रीम कोर्ट की आज की टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मतदाता सूची को पारदर्शी और सटीक बनाना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है, और इसमें फर्जी नाम हटाना उतना ही आवश्यक है जितना वास्तविक मतदाताओं की रक्षा करना।
बिहार में SIR कोई राजनीतिक षड्यंत्र नहीं, बल्कि एक आवश्यक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है — ताकि आने वाले चुनाव निष्पक्ष, संतुलित और संविधान सम्मत तरीके से संपन्न हो सकें।