अस्मिता के नाम पर असहाय राजनीति: विपक्ष की बोली में दम नहीं, आंकड़ों में सरकार की सच्चाई”
जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव करीब आ रहा है, वैसे-वैसे विपक्ष की ‘बिहारी अस्मिता’ की आवाज़ तेज़ होती जा रही है — और सरकार की बिहार विकास गाथा और भी स्पष्ट।
राजद और INDIA गठबंधन, जिनका अपना कुनबा अभी तक सीट बंटवारे के सवाल पर एकमत नहीं हो पाया है, अब जनता को यह समझाने में जुटे हैं कि बिहार की पहचान खतरे में है। तेजस्वी यादव के मंच से आवाज़ उठती है कि “बिहारी नेतृत्व चाहिए” — जैसे कि अभी तक बिहार किसी बाहरी रिमोट से चल रहा था।
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विपक्ष की रणनीति: ‘गौरव’ के नाम पर ग़लत फॉर्मूला?
RJD और INDIA गठबंधन का दावा है कि वे ‘बिहारी गौरव’ और सामाजिक न्याय के नाम पर राज्य में नया मॉडल लाएंगे —
लेकिन विडंबना यह है कि जिनके शासन में बिहार एक समय “जंगलराज” के नाम से बदनाम हुआ, वही अब संविधान और अस्मिता की दुहाई दे रहे हैं।
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विपक्ष:
रोजगार की बात करता है, लेकिन 15 वर्षों तक शासन करने के बाद एक स्थायी रोजगार नीति तक नहीं दे सका।
कानून-व्यवस्था पर बोलता है, लेकिन 1990–2005 के दौर में पटना की शाम 6 बजे बंद हो जाती थी — अब रात 10 बजे तक लोग चाय की दुकान पर बैठते हैं।
महिलाओं के लिए योजनाएं गिनाता है, जबकि आज उन्हें 35% सरकारी नौकरी में आरक्षण JDU-भाजपा सरकार ने ही दिया है।
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने जमीन पर वो काम किया है, जो विपक्ष अब पोस्टर और नारे में बेचने की कोशिश कर रहा है।
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सरकार की उपलब्धियाँ:
बिजली हर घर तक पहुँची — वो भी नियमित।
सड़क और पुल निर्माण में बिहार राष्ट्रीय औसत से तेज।
हर जिले में मेडिकल कॉलेज या योजना निर्माणाधीन।
कानून-व्यवस्था में सुधार — अपराध दर में राष्ट्रीय औसत से नीचे।
नियोजन मेले और स्टार्टअप नीति — 2025 के पहले 6 महीनों में ही 2 लाख से अधिक युवाओं को निजी क्षेत्र में नियुक्ति।
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सवाल यह है: क्या अस्मिता खाली स्लोगन से बनती है या संकल्प से?
विपक्ष की राजनीति ‘बिहारी गौरव’ की चाशनी में लपेटा पुराना बेस्वाद और वासी लड्डू है।
विपक्ष का ‘बिहारी अस्मिता’ का नारा कुछ वैसा ही है जैसे रथ पर बैठकर खुद को ‘धरतीपुत्र’ बताना, जबकि जनता जानती है कि उनका “राज” आना मतलब राज्यभर में उनके चमचों की मनमानी या गुंडागर्दी।
विकास, विश्वास और ये सब खोखले दावों पर उनसे सवाल पूछेगा कौन?
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सत्ता के भूखे इन नेताओं को जब योजनाएं, नीतियां और रिपोर्ट कार्ड में कुछ ठोस नहीं मिलता, तो वे “गौरव”, “संविधान”, और “अस्मिता” जैसे शब्दों की “भावनात्मक फुग्गी” उड़ाते हैं।
लेकिन बिहार की जनता अब विकास को देखती है, भाषण नहीं।
जब विपक्ष के पास न कोई नया विजन है, न ठोस योजना — तब ‘बिहारी अस्मिता’ जैसे भावनात्मक जुमलों का सहारा लेकर चुनाव जीतने का सपना देखना रेत पर महल बनाने जैसा है।
वहीं JDU–भाजपा सरकार हर बार अपने काम से जवाब देती है — “विकास की राजनीति” ही असली अस्मिता है।