📈 प्रभाव और पहुंच
2006 में विश्व बैंक की सहायता से शुरू हुआ JEEViKA, अब तक 38 जिलों में 13–18 मिलियन ग्रामीण महिलाओं को स्व-सहायता समूहों (SHGs), ग्राम संगठनों और महासंघों में संगठित कर चुका है।
दूसरे चरण (BTDP) में 1.8 मिलियन महिलाओं को 1.5 लाख SHGs के माध्यम से जोड़ा गया और करीब ₹775 करोड़ का बैंक ऋण और ₹190 करोड़ की बचत जुटाई गई।
💵 आर्थिक सशक्तिकरण और आजीविका में सुधार
SHG की सदस्य महिलाओं की आय, बचत और रोजगार के अवसरों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जो सांख्यिकीय रूप से सिद्ध है।
प्रमुख आजीविका सेवाओं में कृषि (जैसे किसान उत्पादक कंपनियाँ), पशुपालन/डेयरी, और गैर-कृषि क्षेत्र शामिल हैं।
उदाहरण स्वरूप, मक्का, खादी, और छोटे व्यवसायों में 20% अधिक आय, समय पर भुगतान और बेहतर बाज़ार उपलब्धता देखी गई।
👩 सामाजिक सुधार और कल्याण
स्वास्थ्य, पोषण, और स्वच्छता में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रचार अभियान चलाए गए हैं।
AIIMS पटना के सहयोग से हेल्थ ट्रेनिंग कार्यक्रम में JEEViKA प्रबंधकों को प्रशिक्षित किया गया, जिसमें 90% से अधिक ने उत्कृष्ट स्वास्थ्य ज्ञान प्राप्त किया।
🗳 समुदाय और लैंगिक सशक्तिकरण
महिलाओं में नेतृत्व क्षमता, वित्तीय स्वतंत्रता, और स्थानीय शासन में भागीदारी में वृद्धि देखी गई।
हालांकि, कुछ क्षेत्रों में प्रभाव का मूल्यांकन अब भी सीमित है।
📝 प्रभावशाली कहानियाँ
सोनी देवी: ₹10,000 के ऋण से शुरुआत कर आज ₹20,000/माह कमा रही हैं।
दीपू देवी: पहले शराब बनाती थीं, अब राशन दुकान और बैंड व्यवसाय से ₹18,000/माह कमा रही हैं।
रजनी: घरेलू हिंसा से बाहर आकर अब ₹6,000/माह कमाती हैं और अपने बच्चों की शिक्षा को सुरक्षित कर रही हैं।
🧩 चुनौतियाँ और सीख
बाजार से जुड़ाव, ब्रांडिंग और वितरण, जलवायु परिवर्तन, और डिजिटल साक्षरता में अब भी कई चुनौतियाँ हैं।
सफलता के लिए क्षमता निर्माण, वित्तीय समावेशन, और संस्थागत सहयोग आवश्यक है।
🌐 स्थानीय समुदाय की राय (Reddit से)
“भारत का सबसे बड़ा ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम… एक जीवन जीने का साधन बन गया है।”
“आर्थिक लाभ के अलावा, महिलाओं में आत्म-निर्भरता और सामाजिक सहभागिता में बड़ा बदलाव आया है।”
✅ निष्कर्ष
JEEViKA ने आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य जागरूकता, और महिला सशक्तिकरण में स्पष्ट रूप से सकारात्मक परिवर्तन लाए हैं। परन्तु, इसके दीर्घकालीन प्रभाव को और अधिक बढ़ाने के लिए बाज़ार से बेहतर जुड़ाव, तकनीकी प्रशिक्षण और जलवायु अनुकूल रणनीतियों की आवश्यकता है।