बिहार विधानसभा का मानसून सत्र सोमवार को जितना गरम मुद्दों पर केंद्रित रहा, उतना ही राजनीतिक रंग मंच पर एक दृश्य की अनुपस्थिति ने सबका ध्यान खींचा। नेपथ्य से गायब थे तेज प्रताप यादव — वही जिनका अब तक विधानसभा की गैलरी में ‘कृष्ण’ स्वरूप में पदार्पण होता था, और जिनका स्थान नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बगल में सुरक्षित समझा जाता था।
आज जब सबकी नजरें थीं यादव बंधुओं के आमने-सामने आने पर, तभी तेज प्रताप की अनुपस्थिति ने हलचल बढ़ा दी। विपक्षी गलियारों से लेकर राजद के आंतरिक खेमों तक फुसफुसाहट शुरू हो गई — “क्या तेज प्रताप रणछोड़ की भूमिका में आ चुके हैं?”
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राजद के एक अंदरूनी सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“पहले कृष्ण बनकर सारथी थे तेजस्वी के रथ के, अब निष्कासन के बाद शायद द्वारका लौटने का मन बना लिया है। रणछोड़ बनकर”
हालाँकि, तेजस्वी यादव अपने दल-बल के साथ विधानसभा में डटे रहे और सरकार पर तीखे वार भी किए। लेकिन उनके दाएं-बाएं देखने पर समर्थकों ने जरूर महसूस किया — ‘कृष्ण’ का खाली रथ।
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तेज प्रताप यादव को लेकर यह भी चर्चा रही कि कहीं वह जान-बूझकर मंच से हटकर एक नयी भूमिका की तलाश में तो नहीं? वह भूमिका जिसमें वह ‘रण’ में नहीं, बल्कि ‘रण से बाहर’ रहकर सत्ता-पथ की नई राजनीति बुनना चाह रहे हैं?
कई लोगों ने यह भी चुटकी ली —
“रणछोड़ वही कहलाता है, जो रण में जीत की बजाय माया की लीला रचने निकल जाए।”
और तेज प्रताप की राजनीति को “लीला” मानने वालों की इस बिहार राजनीति में कोई कमी नहीं।
संक्षेप में कहें तो, आज विधानसभा के रण में अर्जुन (तेजस्वी) अकेले रहे, और कृष्ण (तेज प्रताप) शायद नए द्वारका (राजनीतिक विकल्प) की रचना में लगे हैं।