पटना, 6 जुलाई | न्यूज़ लहर ब्यूरो
राजेश सिन्हा
बिहार में अपराधियों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि अब उन्हें न तो पुलिस का डर है, न प्रशासन का और न ही कानून का। सरेआम हत्या, लूटपाट, फायरिंग और फिर अपराधियों का बिना किसी गंभीर दंड के छूट जाना — यह सब अब आम होता जा रहा है। हालत यह है कि अपराध करने के बाद अपराधी “शुभम चलता हूँ” जैसी बेशर्म बातें कहते हुए घटनास्थल से निकल जाते हैं।
पटना में बिहार के प्रसिद्ध उद्योगपति डॉ. गोपाल खेमका की गोली मारकर हत्या, सियासी पारा चढ़ा
राजधानी पटना जैसे प्रशासनिक केंद्र में स्थिति कुछ और गंभीर है। यहां कानून-व्यवस्था की निगरानी के लिए कुल 7 आईपीएस और 22 एसपी/डीएसपी स्तर के अधिकारी तैनात हैं, बावजूद इसके अपराध नियंत्रण से बाहर है। पिछले 5 महीनों में पटना में 116 हत्या, 47 लूट, 11 डकैती, 41 बलात्कार और 343 घरों में चोरी जैसी घटनाएं दर्ज हुई हैं।
कल तेल कारोबारियों से रंगदारी मांगने की घटना और उससे पहले बिहार के एक प्रमुख व्यवसायी गोपाल खेमका की सरेआम हत्या — यह दर्शाती हैं कि राज्य में संगठित अपराधियों का तंत्र कितना मजबूत और पुलिस-प्रशासन कितना असहाय है।
पटना की कानून-व्यवस्था सुधारने मैदान में नए SSP कार्तिकेय कुमार
प्रश्न यह उठता है कि क्या यह कानून-व्यवस्था की प्रशासनिक विफलता है या फिर सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी?
पुलिस-प्रशासन भले ही अपनी कार्यप्रणाली को चुस्त-दुरुस्त बताने में जुटा हो, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही कहती है। थानों में पुलिसकर्मियों की भारी कमी, संसाधनों की अपर्याप्तता (जर्जर वाहन, सीमित हथियार), और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसे कारक बिहार में कानून व्यवस्था को खोखला बना रहे हैं।
#BiharPolice की बड़ी कार्रवाई —अन्तर्राज्यीय कुख्यात अजय वर्मा गिरोह समेत गिरफ्तार,
विश्लेषक मानते हैं कि राजनीतिक संरक्षण के चलते पुलिस का स्वतंत्र संचालन बाधित होता है। अपराधियों को अक्सर राजनीतिक छत्रछाया मिल जाती है, जिससे कानून का डर समाप्त हो जाता है। यह भी एक कारण है कि गिरफ्तार अपराधी भी जल्दी जमानत पर बाहर आ जाते हैं और दोबारा उसी रास्ते पर लौट जाते हैं।
जनता के मन में अब यह सवाल गूंज रहा है —
“अगर राजधानी तक में आम नागरिक असुरक्षित हैं, तो क्या बिहार में कानून का राज सच में बचा है?”