बिहार, 4 सितंबर 2025 –
आज राज्यव्यापी बिहार बंद ने राजनीतिक सुर्खियों को भर दिया। यह बंद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां पर अभद्र टिप्पणी के विरोध में एनडीए द्वारा बुलाया गया था। बंद का समय सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक निर्धारित किया गया और इसमें महिला मोर्चा की सक्रिय भागीदारी देखी गई।
सत्ता पक्ष का पक्ष
एनडीए ने इस बंद को जन आक्रोश का प्रतीक बताया। पार्टी का दावा है कि प्रधानमंत्री की माता के प्रति अभद्र टिप्पणी का विरोध करना जनता का संवैधानिक और नैतिक अधिकार है। एनडीए के नेताओं ने इसे शिष्टाचार और सम्मान की रक्षा का आंदोलन बताया और कहा कि बिहार की जनता ने इस संदेश को समझा और समर्थन किया।
विपक्ष का दृष्टिकोण
वहीं, नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने इस बंद को राजनीतिक प्रचार का साधन करार दिया। उनका दावा है कि आम जनता ने इसे समर्थन नहीं दिया और बंद सिर्फ गुंडागर्दी और भय का प्रदर्शन साबित हुआ। उन्होंने कहा कि इस तरह के आंदोलनों से जनता की रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए हानिकारक है।
सत्ता पक्ष और विपक्ष के दावे एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत दिखाई दे रहे हैं।
1. सत्ता पक्ष का तर्क:
यह आंदोलन सम्मान और नैतिक अधिकार की रक्षा के लिए आवश्यक था।
महिला मोर्चा और स्थानीय समर्थकों की भागीदारी इसे व्यापक जन समर्थन का संकेत देती है।
2. विपक्ष का तर्क:
बंद का व्यापक असर जनता पर नकारात्मक रहा।
इसे राजनीतिक प्रचार और डर पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
बिहार बंद ने राज्य में राजनीतिक ध्रुवीकरण को और गहरा किया है। सत्ता पक्ष इसे जन समर्थन का संकेत मान रहा है, जबकि विपक्ष इसे भय और असहमति की नीति बता रहा है। आगामी दिनों में इस बंद के प्रभाव और जनता की प्रतिक्रिया, राजनीतिक दलों के लिए रणनीतिक दिशा तय करने में अहम साबित होगी।
