पटना | न्यूज़ लहर ब्यूरो
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर एक तरफ चुनाव आयोग गंभीरता और पारदर्शिता के साथ काम कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल इसे लोकतंत्र पर हमला कह कर विरोध की राजनीति में व्यस्त हैं।
विचारणीय प्रश्न है — जब बात मतदाता सूची को साफ-सुथरा और निष्पक्ष बनाने की हो, तब विपक्ष क्यों घबरा रहा है?
क्या है ये अभियान?
चुनाव आयोग ने पूरे बिहार में मतदाताओं की पहचान को सत्यापित करने के लिए 25 जून से 24 जुलाई तक का विशेष अभियान चलाया है।
यह कदम 22 वर्षों के अंतराल के बाद उठाया गया है — क्योंकि पिछली बार 2003 में मतदाता सूची का ऐसा गहन सत्यापन हुआ था।
इस बार प्रक्रिया को डिजिटल और घर-घर जाकर BLOs के माध्यम से पूरा किया जा रहा है, ताकि कोई भी फर्जी मतदाता सूची में न रहे और हर वास्तविक नागरिक का मताधिकार संरक्षित हो।
सरकार और आयोग की ईमानदार पहल
4.96 करोड़ पुराने मतदाताओं को दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है — उनका नाम स्वतः सुरक्षित रहेगा।
BLOs और पंचायत स्तर पर मौजूद जीविका कैडर, शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों की मदद से सत्यापन घर-घर जाकर किया जा रहा है।
JEEViKa भारत का सबसे बड़ा ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि कोई भी दस्तावेज़-वंचित नागरिक फॉर्म भरकर आसानी से अपनी पहचान दर्ज करा सकता है।
यह पहल न केवल पारदर्शिता बढ़ाती है, बल्कि यह सुनिश्चित करती है कि किसी बाहरी या फर्जी व्यक्ति को बिहार की राजनीति तय करने का अधिकार न मिले।
नीतीश कुमार: बिहार के कायाकल्प की दो दशक लंबी कहानी
विपक्ष की बेचैनी: डर किस बात का?
राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि अगर यह अभियान जनहित में है, तो विपक्षी दल इसका इतना तीव्र विरोध क्यों कर रहे हैं?
क्या यह डर है कि
फर्जी वोटरों के हटते ही जातिगत और तुष्टिकरण पर आधारित राजनीति की नींव हिल जाएगी?
तेजस्वी यादव, दीपंकर भट्टाचार्य, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने इसे “वोटबंदी”, “लोकतंत्र पर हमला” और “जनसंहार” जैसे शब्दों से नवाजा है, लेकिन इन्होंने यह नहीं बताया कि आखिर सही मतदाता सूची इन्हें क्यों परेशान कर रही है।
लोकतंत्र पर लाठी की छाया,बिहार से दिल्ली तक बाहुबलियों की छाया
कई विश्लेषकों का मानना है कि
> “जो चुनाव हमेशा फर्जी नामों, मृत वोटरों और डुप्लीकेट पहचान पर निर्भर रहे हों, उन्हें यह ईमानदार सुधार नागवार तो लगेगा ही!”
विपक्ष की दलीलों में दम है या भ्रम?
विपक्ष का आरोप और सच्चाई
सत्यापन चुनाव से पहले क्यों? क्योंकि पिछली बार 2003 में हुआ था, और अब 2025 में चुनाव है — यही उपयुक्त समय है।
25 दिन में नहीं हो सकता पूरे राज्य में BLOs, BLA, जीविका कैडर की टीम घर-घर जाकर कार्य कर रही है।
गरीबों का नाम कट जाएगा आयोग ने साफ किया है कि दस्तावेज न होने पर भी फॉर्म भरकर नाम जोड़ा जा सकता है।
निष्कर्ष: मतदाता का अधिकार, विपक्ष का व्यापार?
बिहार की राजनीति में लंबे समय से वोट बैंक बनाम वोट अधिकार की लड़ाई चली आ रही है। आज जब चुनाव आयोग एक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया से हर मतदाता की पहचान सुनिश्चित करने में लगा है, तो विपक्ष का यह प्रलाप शक की सुई उनकी मंशा पर ले आता है।