पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ‘टोपी विवाद’ सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। मदरसा बोर्ड के शताब्दी समारोह में जब उन्हें मुस्लिम टोपी पहनने के लिए दी गई, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उसे खुद न पहनकर अपने मंत्री मोहम्मद जमा खान के सिर पर रख दिया। वीडियो वायरल होते ही प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
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कांग्रेस और विपक्ष का तंज
कांग्रेस ने इस घटना को हिंदुत्व की ओर झुकाव बताते हुए नीतीश पर कटाक्ष किया। वहीं आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने इसे मुस्लिम समुदाय की अनदेखी करार दिया और कहा कि मुख्यमंत्री की मानसिक स्थिति ठीक नहीं लगती।
पुरानी बातें और विरोधाभास
2013 में नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि “देश चलाने के लिए टोपी भी पहननी होगी और तिलक भी।” आज वही नीतीश खुद टोपी पहनने से बचते दिखे। इससे राजनीतिक विरोधाभास उजागर हुआ।
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नीतीश की आदत या रणनीति?
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, नीतीश कुमार कई बार सार्वजनिक मंचों पर माला और टोपी दूसरों को पहनाते रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह उनका निजी स्वभाव है या फिर चुनावी रणनीति?
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चुनावी गणित से जुड़ा संकेत
विश्लेषकों का मानना है कि मुस्लिम वोट बैंक (लगभग 18%) पर इस घटना का असर हो सकता है। कुछ इसे अल्पसंख्यक तुष्टिकरण मान रहे हैं तो कुछ इसे भाजपा और हिंदुत्व की राजनीति की ओर झुकाव का प्रतीक बता रहे हैं
‘टोपी विवाद’ ने बिहार की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है। यह सिर्फ एक छोटा-सा कदम नहीं बल्कि बड़ा राजनीतिक संदेश माना जा रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव में इसका असर जरूर देखने को मिलेगा।