पटना, 9 जुलाई 2025।
बिहार की राजधानी पटना में चक्का जाम था… पर असली जाम तो विपक्ष की एकता में लग गया! राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जिस “संघर्ष रथ” पर सवार होकर लोकतंत्र की रक्षा करने निकले थे,
उसमें चढ़ने की कोशिश में पप्पू यादव फिसल गए — और कन्हैया कुमार को देखकर सभी की भौंहें तन गईं। कोई बोला “Security reasons”, तो कोई बोला “Capacity full”, मगर असल में सबके मन में एक ही डर — “इतना भी मत चढ़ो पप्पू बाबू, कहीं मंच ही न हिल जाए!”
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रथ पर ‘नो एंट्री’ बोर्ड?
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के गठजोड़ के इस नए शो में जब जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव मंच पर चढ़ना चाह रहे थे, तभी सुरक्षाकर्मी अचानक एक्टिव हो गए — जैसे कि उनकी जेब में पप्पू के खिलाफ वारंट छुपा हो! उन्हें मंच पर नहीं चढ़ने दिया गया। वहीं, साथ में खड़े कांग्रेस के नेता कन्हैया कुमार को भी दूर रखा गया — शायद उन्हें देखकर मंच आयोजकों को अपनी कुर्सी खिसकती नज़र आ रही थी।
“जनता की गाड़ी चक्का जाम में थी, लेकिन नेता लोग के मन में तो पप्पू-जाम और कन्हैया-विस्फोट चल रहा था!”
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कन्हैया: एक नाम, जिससे डरते हैं ‘युवराज’ के दोस्त
कन्हैया कुमार भले ही अभी राष्ट्रीय नेतृत्व में बहुत ऊँचाई तक न पहुँचे हों, लेकिन उनकी मौजूदगी ने कुछ लोगों की नींद हराम कर दी है। क्या ये वही नेता हैं जिनकी छात्र राजनीति की धाक आज भी बिहार के कुछ प्रमुख नेताओं के आत्मविश्वास को डगमगा देती है?
“कन्हैया को मंच पर चढ़ने दिया तो क्या राहुल के भाषण का कैमरा भी उधर मुड़ जाएगा?” और कान्हा
“बोलने लगा तो फिर… कांग्रेस में किसकी सुनी जाएगी?”
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ऐसे तमाम सवालों से घबराए आयोजकों ने शायद तय किया कि ‘युवा नेता’ नाम का कोटा पहले ही भर चुका है — बाकी सब प्रतीक्षा सूची में जाएं।
पप्पू यादव: विपक्ष की आँख की किरकिरी या जनता की उम्मीद?
पप्पू यादव ने रथ से न सिर्फ उतरने का अपमान झेला, बल्कि लोकतांत्रिक गठबंधन की असलियत भी उजागर कर दी।
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“समानधर्मी” दलों के बीच भी असमानता की लकीर खींची जा चुकी है — कोई ‘क्लोज फ्रेंड’ तो कोई ‘बस देखने वाले’।
“जिन्होंने मुज़फ्फरपुर में लाशों के ढेर के बीच जाकर सेवा की, उन्हें आज मंच के पास भी नहीं जाने दिया गया। शायद विपक्ष को ऐसे नेता नहीं चाहिए जो जनता से ज़्यादा लोकप्रिय हो जाएं।”
राजनीति का नया मंत्र शायद यह है:
“सत्ता के खिलाफ संघर्ष करो, लेकिन अपने ही दल के लोकप्रिय नेताओं से थोड़ी दूरी बनाकर!”
नाटक का ट्रेलर या विपक्षी एकता की तस्वीर?
यह नजारा विपक्षी एकता के नाम पर एक ग्रैंड इवेंट जैसा था — एक ऐसा इवेंट जिसमें प्रवेश वही पाए, जिनका “पार्टी स्टेटस” मंजूर हो। पप्पू यादव और कन्हैया कुमार जैसे नेता सिर्फ दर्शक बने रहे।
“‘जन स्वराज’ और ‘जनादेश’ की बात करने वाले नेता अगर जनता के मन में जगह बना लें, तो महागठबंधन के ‘महामंच’ को दिक्कत हो सकती है।”
मंच पर चढ़ने के लिए सिर्फ सीढ़ी नहीं, सियासी समीकरण भी चाहिए।
राहुल और तेजस्वी के रथ की एक सीट खाली थी, लेकिन पप्पू यादव के लिए उसमें जगह नहीं थी।
कन्हैया कुमार की आंखों में सवाल थे, लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं।
कहीं ऐसा तो नहीं कि विपक्ष आज सिर्फ भाजपा से नहीं, बल्कि अपने ही अंदर उठती (बढ़ती साख) कुछ आवाज़ों से भी डरने लगा है?