पटना, जुलाई 2025
साल 2005 में जब नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तो पूरे राज्य में एक नई उम्मीद जगी थी — कि अब ‘जंगलराज’ का अंत होगा और ‘सुशासन’ की शुरुआत। पुलिस सुधार, फास्ट ट्रैक कोर्ट, सड़क और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों पर प्राथमिकता देने से उन्होंने शासन का एक नया मानक स्थापित किया।
नीतीश कुमार: बिहार के कायाकल्प की दो दशक लंबी कहानी
लेकिन 2025 आते-आते वही नीतीश कुमार अब जनता की आलोचना के केंद्र में हैं — न सिर्फ कानून-व्यवस्था के बिगड़ते हालात को लेकर, बल्कि स्वास्थ्य गिरावट और मंचीय व्यवहार को लेकर भी। अब सवाल सिर्फ सुशासन के बचे प्रभाव का नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री के मानसिक-सामाजिक सक्रियता पर भी खड़े हो रहे हैं।
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2005–2010: जब नीतीश कुमार बने थे ‘बदलाव का चेहरा’
फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना और 70,000 अपराधियों को सजा।
पुलिस में SAP बल की तैनाती, थानों का आधुनिकीकरण।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर रुख और पारदर्शिता का वादा।
जनमानस में एक नई आशा — अब बिहार में “कानून का शासन” होगा।
2020–2025: सुशासन की छाया में अनिश्चितता और आलोचना
अपराध और अव्यवस्था
हत्या, अपहरण, चोरी और बलात्कार जैसे अपराधों में वृद्धि।
फर्जी शस्त्र लाइसेंस और अवैध हथियार कारोबार का खुलासा।
विपक्ष के आरोप: लालू यादव बोले – “65,000 से अधिक हत्याएं नीतीश राज में”, तेजस्वी बोले – “बिहार में अब फिर भय का माहौल है।”
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सार्वजनिक व्यवहार पर सवाल
हाल के महीनों में नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर गहरी चिंताएं सामने आई हैं:
कई बार जनसभाओं में असंबंधित या भ्रमित भाषण देते देखे गए।
कुछ अवसरों पर उन्होंने मंच से अधिकारियों और पत्रकारों को फटकारा, जिससे सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुँचा।
विरोधियों ने उन्हें “थके हुए मुख्यमंत्री”, और कुछ ने “राजनीतिक संन्यास की आवश्यकता” तक कह दिया।
सोशल मीडिया पर कई वायरल वीडियो में वे बौखलाए, चिड़चिड़े और असंगत नजर आए हैं।
बिहार में अपराधियों में कानून का खौफ नहीं। जिम्मेदार प्रशासन या राजनीतिक इच्छाशक्ति?
नीतीश कुमार का जवाब और सरकार की कोशिशें
नीतीश कुमार ने इन आलोचनाओं को राजनीतिक साजिश बताते हुए खारिज किया।
सरकार की ओर से 600 नई पुलिस गाड़ियों की तैनाती, 1.22 लाख पदों पर भर्ती प्रक्रिया, और BNSS कानून के तहत जब्ती अभियान को कानून-व्यवस्था सुधार की दिशा में ठोस कदम बताया गया।
बिहार में कानून व्यवस्था बदहाल: जिम्मेदार कौन — राजनेता या प्रशासन?
राजनीतिक संदेश और जन भावना
2005 में जनता ने जिस “सुशासन बाबू” पर भरोसा जताया था, आज वही चेहरा थका हुआ, दबाव में और अस्थिर नजर आ रहा है। न सिर्फ शासन पर नियंत्रण की धार कमजोर पड़ी है, बल्कि उनके व्यवहार में आए बदलाव ने यह संकेत दिया है कि शायद अब नीतीश कुमार स्वयं भी वैसी सक्रियता और स्पष्टता से शासन नहीं चला पा रहे, जैसी उनसे अपेक्षा की जाती रही है।
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तुलनात्मक चार्ट: तब बनाम अब
2005–2010 2020–2025
कानून-व्यवस्था अपराध। पुलिस पर निष्क्रियता में भारी गिरावट, निष्क्रियता केआरोप सजा की दर ↑
मुख्यमंत्री की छवि। थके हुए, असमंजस , निर्णयशील, पारदर्शी, व्यवहार में
ऊर्जावान नेता। अस्थिरता
जनसभाओं का प्रभाव भ्रम, विवाद, कटाक्ष और
उत्साह, संवाद, प्रेरणा चिड़चिड़ापन
विपक्ष की भूमिका। विपक्ष सक्रिय, आक्रामक
कमज़ोर, बिखरा आलोचना
जनविश्वास “बदलाव। “स्थिति फिर वहीं लौट रही है”
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निष्कर्ष: क्या अब भी नीतीश कुमार में है ‘सुशासन’ का माद्दा?
2005 से 2010 तक नीतीश कुमार बिहार की उम्मीद बनकर उभरे थे। आज, जब वे अपनी राजनीतिक यात्रा के अंतिम चरण में हैं, उनके प्रयासों की चमक कम होती दिख रही है — और उनकी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति ने इसे और जटिल बना दिया है।
“बदलाव का ब्रांड या ब्रांड का बदलाव? जन सुराज की असलियत”
जनता में यह सवाल गहराता जा रहा है — क्या बिहार को अब नए नेतृत्व की आवश्यकता है? क्या नीतीश कुमार अब भी वही हैं जिन्होंने ‘जंगलराज’ को हराया था?
समय इस सवाल का जवाब देगा, लेकिन वर्तमान संकेत यही बताते हैं कि नीतीश कुमार की छवि और शासन दोनों अब निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं।