Sunday, July 27, 2025
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बिहार में फिर सरदर्द साबित होते दिख रहे हैं विपक्षियों के लिए असदुद्दीन ओवैसी

गठबंधन का प्रस्ताव भी किया नजरअंदाज

पटना, 6 जुलाई | न्यूज़ लहर ब्यूरो

जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक गहमागहमी तेज़ होती जा रही है। इस बीच AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक बार फिर राज्य की राजनीति में विपक्ष के लिए चिंता का कारण बनते जा रहे हैं।

INDIA गठबंधन को भेजा प्रस्ताव, विपक्ष ने किया नजरअंदाज

हाल ही में ओवैसी ने INDIA गठबंधन में शामिल होने की औपचारिक पेशकश करते हुए कांग्रेस, राजद, सहित प्रमुख विपक्षी दलों को पत्र लिखा था। उन्होंने आग्रह किया था कि सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट होना चाहिए और AIMIM भी इस मकसद से उनके साथ आना चाहती है।

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हालांकि, इस प्रस्ताव को INDIA गठबंधन के नेताओं ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। न तो किसी दल ने उसका औपचारिक उत्तर दिया और न ही किसी मंच से उसका उल्लेख किया गया।

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राजनीतिक जानकार इसे अविश्वास और असहजता का संकेत मान रहे हैं, क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनावों में AIMIM ने सीमांचल की 5 सीटों पर जीत दर्ज कर विपक्ष के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई थी।

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अब अकेले मैदान में, विपक्ष की परेशानी बढ़ी

AIMIM ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि उसे गठबंधन में शामिल नहीं किया गया तो वह 30 से अधिक सीटों पर स्वतंत्र रूप से उम्मीदवार उतारेगी, विशेषकर सीमांचल, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पटना और शहरी इलाकों में।

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पार्टी प्रमुख ओवैसी ने सीमांचल के दौरों में साफ कहा —

 “हमने सहयोग की इच्छा जताई, लेकिन जवाब न आना दर्शाता है कि हमारा स्वागत नहीं है। AIMIM अब अपनी ताकत पर चुनाव लड़ेगी।”

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विपक्ष की दोहरी चुनौती

राजद और कांग्रेस पहले ही एनडीए और नीतीश कुमार की नई रणनीति से जूझ रहे हैं। ऐसे में सीमांचल और मुस्लिम वोटों पर AIMIM की दखल से उनकी चुनावी गणित और बिगड़ सकती है।
2020 में AIMIM के पांच विधायकों ने राजद के बहुमत के रास्ते में रोड़ा खड़ा किया था, और अब एक बार फिर बिखरते वोटों का डर विपक्ष को सता रहा है।

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राजनीतिक विश्लेषण:

गठबंधन की पेशकश के बावजूद नजरअंदाज किया जाना यह दिखाता है कि विपक्ष AIMIM के साथ सहज नहीं है।

AIMIM की स्वतंत्र उपस्थिति सीमांचल और शहरी मुस्लिम वोटों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

यह स्थिति बीजेपी-जदयू को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचा सकती है, जैसा पहले हो चुका है।

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असदुद्दीन ओवैसी न सिर्फ सीमांचल में अपनी जमीन मजबूत कर रहे हैं, बल्कि विपक्ष को यह भी जता रहे हैं कि उन्हें नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। अब सवाल ये है कि क्या विपक्ष AIMIM को अलग रखकर 2025 की लड़ाई लड़ सकता है, या यह रणनीति खुद उनके लिए उलटी साबित होगी?

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