बिहार विधानसभा चुनाव 2025: मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सियासी बवाल, क्या लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है?
न्यूज लहर ब्यूरो: चिरंतन विद्रोही,जुलाई/ 4 /2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्ष ने इसे भाजपा और संघ की साजिश बताकर लोकतंत्र की हत्या की कोशिश करार दिया है। जानिए पूरा मामला।
🔍 बिहार चुनाव 2025: मतदाता सूची पुनरीक्षण क्यों बना सियासी मुद्दा?
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Voter List Revision 2025) की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों ने तीखा विरोध शुरू कर दिया है। उनका आरोप है कि यह सिर्फ एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोकतंत्र को कमजोर करने की रणनीति है।
🗳️ क्या है मतदाता सूची पुनरीक्षण की नई प्रक्रिया?
चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए कुछ नए तकनीकी मानदंड लागू किए हैं:
- आधार कार्ड से लिंकिंग को प्राथमिकता
- मोबाइल OTP आधारित पहचान सत्यापन
- डिजिटल फॉर्म और दस्तावेज अपलोड प्रक्रिया
- स्थायी पते और दस्तावेजों की कठोर जांच
इन शर्तों के चलते बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
⚠️ विपक्ष का आरोप: वोटर लिस्ट के बहाने लोकतंत्र की हत्या
राजद, कांग्रेस, वामपंथी दलों और अन्य विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि:
भाजपा और आरएसएस वोटर लिस्ट को “शुद्ध” करने के नाम पर राजनीतिक विरोधियों के समर्थक वोटरों को बाहर करना चाहते हैं।
दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और घुमंतू समुदायों को टारगेट किया जा रहा है।
यह रणनीति महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पहले आजमाई जा चुकी है, जहाँ लाखों वोटरों के नाम अचानक लिस्ट से गायब हो गए थे।
लालू परिवार का आंतरिक कलह
📊 क्या कहता है महाराष्ट्र का उदाहरण?
2023 में महाराष्ट्र में हुए बीएमसी चुनाव के दौरान 15 लाख से अधिक वोटरों के नाम मतदाता सूची से हटाए जाने का मामला सामने आया था। वहाँ भी यही प्रक्रिया अपनाई गई थी — आधार लिंकिंग, डिजिटल वेरिफिकेशन, और दस्तावेजों की सख्ती।
🧑🤝🧑 किसे होगा सबसे ज़्यादा नुकसान?
बिहार की जनसंख्या संरचना को देखते हुए, ये नई शर्तें निम्न वर्गों के लिए सबसे नुकसानदायक हो सकती हैं:
- अल्पसंख्यक समुदाय, जिनके पास डिजिटल संसाधनों की कमी है
- ग्रामीण महिलाएं और वृद्ध, जो तकनीक से दूर हैं
- मजदूर और प्रवासी, जिनका पता और दस्तावेज अक्सर अधूरे रहते हैं
- छात्र और किरायेदार, जिनका स्थायी पता उपलब्ध नहीं होता
🏛️ चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठते सवाल
चुनाव आयोग को भारतीय लोकतंत्र का प्रहरी कहा जाता है। लेकिन यदि मतदाता सूची में छँटाई की प्रक्रिया एकतरफा और असमान रूप से लागू की जाती है, तो इसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
विपक्ष की मांगें:
सार्वजनिक मतदाता लिस्ट का Social Audit
नाम हटाए जाने की स्पष्ट सूचना और पुनः समीक्षा का अवसर
स्वतंत्र निगरानी समिति की नियुक्ति
📢 निष्कर्ष: लोकतंत्र मतदाता सूची से ही ज़िंदा है
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक है और ऐसे में यदि लाखों वोटर तकनीकी कारणों से वंचित हो जाते हैं, तो यह केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद पर चोट होगी।
मतदाता सूची का पुनरीक्षण जरूरी है, लेकिन इसका उपयोग किसी भी वर्ग विशेष को सत्ता की दौड़ से बाहर करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए लेकिन चुनाव आयोग को पारदर्शिता और समावेशिता के सिद्धांतों को हर हाल में बनाए रखना चाहिए।
#बिहार विधानसभा चुनाव 2025 #मतदाता सूची पुनरीक्षण #Bihar voter list revision #चुनाव आयोग विवाद #भाजपा मतदाता सूची #लोकतंत्र पर खतरा बिहार #Maharashtra voter list deletion #आधार कार्ड मतदाता सूची