“बदलाव का ब्रांड या ब्रांड का बदलाव? जन सुराज की असलियत”
प्रशांत किशोर की नई भूमिका: एक सूत्रधार या साझेदार?
प्रशांत किशोर: रणनीतिकार नहीं, अब ‘पॉलिटिकल स्टार्टअप कंसल्टेंट’?
लेखक: चिरंतन विद्रोही
तिथि: 27 जून 2025
बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। इस करवट के केंद्र में हैं प्रशांत किशोर — कभी नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी और जगन रेड्डी जैसे नेताओं के चुनावी रणनीतिकार रहे, आज खुद एक राजनीतिक अभियान ‘जन सुराज’ के जरिए सुर्खियों में हैं। लेकिन अब धीरे-धीरे यह स्पष्ट हो रहा है कि प्रशांत किशोर महज एक रणनीतिकार नहीं, बल्कि ‘पॉलिटिकल स्टार्टअप कंसल्टेंट’ की भूमिका में आ चुके हैं — यानी एक ऐसा पेशेवर जो राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि राजनीतिक उत्पाद और ब्रांड गढ़ता है।
जन सुराज: वैकल्पिक राजनीति या वैकल्पिक मॉडल?
2022 में जब प्रशांत किशोर ने जन सुराज पदयात्रा की शुरुआत की थी, तो इसे एक “व्यवस्था परिवर्तन अभियान” के रूप में प्रचारित किया गया। कहा गया कि यह बिहार की टूटी हुई राजनीति को सुधारने की एक पहल है। लेकिन तीन साल बाद आज जन सुराज एक संगठित राजनीतिक इकाई के रूप में सामने आ चुका है, जिसके पास जमीनी कार्यकर्ता कम, पूर्व सांसद और रसूखदार लोग ज्यादा हैं।
इस संगठन की नीति, पदाधिकारियों की नियुक्ति और निर्णय-प्रक्रिया में पारदर्शिता का घोर अभाव देखा जा सकता है। ज़्यादातर नियुक्तियाँ बिना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के, या “योग्यता और सेवा” नहीं, बल्कि “संपर्क और साधन” के आधार पर होती दिख रही हैं।
पूर्व सांसद उदय सिंह की ‘चुपचाप’ भागीदारी और राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना।
जन सुराज के साथ जुड़े एक महत्वपूर्ण नाम हैं पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ़ पप्पू सिंह। पूर्व में भाजपा और कांग्रेस — दोनों पार्टियों से सांसद रहे उदय सिंह पूर्णिया राजघराने से आते हैं। वे एक समय में भाजपा के प्रभावशाली चेहरों में शुमार थे। अब यह साफ हो गया कि जन सुराज के “वास्तविक फाइनेंसर और संरक्षक” उदय सिंह ही हैं और जन सुराज के असली मालिक वही हैं।
प्रशांत किशोर रणनीतिकार,सूत्रधार या साझीदार
प्रशांत किशोर खुद को “राजनीति सुधारने वाला” बताते हैं। लेकिन उनके काम करने की शैली एक पॉलिटिकल स्टार्टअप इनक्यूबेटर जैसी है। वे राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि डिज़ाइन किया गया ब्रांड प्रस्तुत करते हैं — जिनमें चेहरे तय होते हैं, फीडबैक सिस्टम तय होता है, डेटा एनालिटिक्स तय होती है, और कई मामलों में उम्मीदवार तक पहले से तय होते हैं।
उनकी भूमिका अब एक रणनीतिक सलाहकार से कहीं आगे जाकर साझेदार, सूत्रधार और कॉर्पोरेट स्टाइल गाइड जैसी बन चुकी है — जो किसी भी संगठन की राजनीतिक यात्रा का प्रारूप तय करता है।
राजनीति का स्टार्टअप मॉडल: नया ट्रेंड
भारत की राजनीति में यह ट्रेंड नया है। पारंपरिक विचारधाराओं और जनआंदोलनों के स्थान पर अब पेशेवर रणनीतिकारों, सोशल मीडिया विशेषज्ञों और डेटा संचालित निर्णयों का युग आ गया है। जन सुराज इसका उदाहरण है — एक ऐसा संगठन जो जमीन से ऊपर नहीं, बल्कि डिज़ाइन टेबल से उगता दिखता है।
यह स्टार्टअप मॉडल “जनता के लिए” नहीं, बल्कि जनता के ज़रिए सत्ता प्राप्त करने की नई विधा को दर्शाता है। एक तरह से यह कॉरपोरेट पॉलिटिक्स का देसी संस्करण है — जहां विचार, मूल्यों और संघर्ष की जगह ब्रांड, अभियान और छवि-निर्माण ने ले ली है।
2025 के चुनावों में होगा असली टेस्ट
जैसे-जैसे 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आएगा, जन सुराज की असली प्रकृति और प्रशांत किशोर की वास्तविक भूमिका और स्पष्ट होती जाएगी। अभी तक जनता के बीच इसकी पहुंच सीमित है, और यह भी देखने वाली बात होगी कि जन सुराज के उम्मीदवार कौन होते हैं, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, और क्या वे सचमुच उस ‘नए बिहार’ के प्रतिनिधि होंगे जिसकी बात बार-बार की जाती है।
बदलाव का भ्रम या नया व्यावसायिक प्रयोग?
प्रशांत किशोर का प्रयोग भारतीय राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ है। उन्होंने पॉलिटिकल मार्केटिंग को शुद्ध राजनीति में बदलने की कोशिश की है। लेकिन यह सवाल आज भी कायम है — क्या यह सचमुच जनता का नेतृत्व है, या एक पेशेवर पॉलिटिकल स्टार्टअप का अगला चैप्टर?
बदलाव का भ्रम अगर स्थायी न हो तो उसे जनता बहुत जल्दी पहचान लेती है। और बिहार की राजनीतिक चेतना इतनी भी भोली नहीं कि वो हर बार नए पैकेज को नया विचार मान ले।