बिहार की राजनीति में बदलाव की नई उम्मीद के तौर पर उभरे जन सुराज अभियान को बेगूसराय से बड़ा झटका लगा है। अभियान की जमीनी मजबूती और सक्रिय कार्यकर्ताओं की भागीदारी के लिए पहचाने जाने वाले इस जिले में अब असंतोष खुलकर सामने आने लगा है। जन सुराज से जुड़े कई अहम पदाधिकारियों और सक्रिय कार्यकर्ताओं ने एक के बाद एक इस्तीफा देना शुरू कर दिया है, जिससे संगठन की अंदरूनी स्थिति पर सवाल उठने लगे हैं।
इस्तीफा देने वाले नेताओं का कहना है कि वे जन सुराज अभियान से एक सकारात्मक बदलाव की उम्मीद में जुड़े थे। उन्हें भरोसा था कि यह आंदोलन पारंपरिक राजनीति से हटकर कुछ नया करेगा, जहां विचारधारा, पारदर्शिता और जनहित सर्वोपरि होंगे। लेकिन अब उनका मानना है कि संगठन उसी पुरानी राजनीति की राह पर चल पड़ा है, जहां फैसले कुछ लोगों के इर्द-गिर्द सिमटकर रह गए हैं और बाकी कार्यकर्ताओं की बातों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
कुछ पदाधिकारियों ने यह भी आरोप लगाया है कि संगठन के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अभाव है। सभी निर्णय पहले से तय होते हैं और ज़मीनी कार्यकर्ताओं की भूमिका महज़ औपचारिक बनाकर रख दी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि अभियान का ध्यान अब जन सरोकारों से हटकर व्यक्तिगत प्रचार-प्रसार और छवि निर्माण पर केंद्रित हो गया है, जो कि आंदोलन की मूल भावना के विपरीत है।
बेगूसराय, जो जन सुराज के लिए शुरुआती दौर में एक मजबूत गढ़ माना जा रहा था, वहां से इस तरह की टूट अभियान के लिए एक बड़ा झटका है। जानकारों का मानना है कि यदि इस असंतोष को समय रहते नहीं संभाला गया, तो यह आंदोलन की साख और आगे की संभावनाओं को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
फिलहाल जन सुराज नेतृत्व की ओर से इन इस्तीफों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन संगठन के भीतर उठ रहे असंतोष की गूंज अब सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया पर भी सुनाई देने लगी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी इस संकट से कैसे निपटती है और क्या वह अपने कार्यकर्ताओं का विश्वास दोबारा जीत पाएगी।