Wednesday, November 20, 2024
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इंसानियत को,जमीर को जिंदा रखो, डरो मत क्योंकि डर के आगे जीत है।

इंसानियत को,जमीर को जिंदा रखो, डरो मत क्योंकि डर के आगे जीत है।

 

शाम ढलने वाली थी, मैं अक्सर इसी बस से अपने घर वापस आता था, मैंने देखा वह लगभग दौड़ती हुई बस के पास आई और बस में चढ़ गयी, वह आगे वाली शीट पर बैठ गयी, मैं पीछे की शीट पर बैठा था, यही कोई 27-28 साल की शादी-शुदा महिला थी, मैं मन ही मन सोच रहा था, आज फिर देर हो गयी शायद, अक्सर ये दो होती है, आज अकेली है, शायद आज वो नहीं आई होगी, मैं देख रहा था उसके सामने वाले सीट पर 25- 30 साल के दो नवजवान बैठे थे, जो उसे देख कर आपस में कुछ बाते कर रहे थे, मैंने बस में नजरें घुमा कर देखा, बस में केवल पांच औरते थी, जिसमे से दो को मैं पर्सनली जानता था, जो टीचर थी, जिनका स्टोपेज 15 मिनट में आने वाला था, वे भी मेरी तरह इसी बस से रोज वापस आती थीं, थोड़ी देर में उनका स्टोपेज आ गया वे दोनों महिला वहाँ उतर गयी, मैंने घड़ी में टाइम देखा 7 बजने वाला था, धीरे-धीरे बस से सारे यात्री उतर रहे थे, बस में केवल 10 लोग बचे थे, तब मैंने महसूस किया वे दो नहीं चार थे, थोड़ी देर में उन तिन माहिलाओ का भी स्टोपेज आ गया, वे तीनो भी उतर गयी, बस में केवल एक महिला बच गयी थी, एक बुजुर्ग व्यक्ति, और मैं, चारो लड़के बार-बार मेरी ओर देख रहे थे, शायद वे चारो मेरे बस से  उतरने का इन्तजार कर रहे थे, मैंने घड़ी में टाइम देखा 8:30 बज रहा था, बस रुकी, यहीं मेरा स्टोपेज था, यहाँ बस 10 मिनट रूकती थी, यह छोटा चट्टी (छोटा बाज़ार ) जैसा था, एक छोटा सा होटल या चाय की दूकान कह लीजिये, दो पान गुमटी, और भी छोटी-मोटी दुकाने थी, लेकिन वे सब 8-8:30 बजे तक बंद हो जाती थी, यही एक चाय की दूकान और पान गुमटी अभी तक खुली रहती थी, मेरा घर यहाँ से थोड़ी दुरी पर था, रात में कोई वाहन नहीं मिलने के कारण मैं यहाँ से पैदल ही धीरे-धीरे चलता हुआ अपने घर चला जाता था, कई बार कोई जान पहचान वाला मिल जाता तो उसके साथ गप-शप करते हुए मैं यहीं रुक कर चाय पी कर रात के 9 बजे तक घर जाता था, लेकिन आज कोई जान पहचान वाला नहीं मिला था, फिर भी मैं चाय की दूकान पर आ कर खड़ा हो गया, मेरा मन अनजाने डर से आशंकित था, हालाकिं ये मेरा वहम भी हो सकता था, क्यों की उस महिला को घूरने के अलावा अभी तक और कोई हरकत नहीं की थी उन चारो ने, फिर भी मन क्यों आशंकित था पता नहीं, इसी उधेड़बुन में मैं वही चाय के दूकान के पास बेंच पर बैठ गया, मैंने देखा वह बुजुर्ग आदमी भी यहीं उतर कर अपने रास्ते चले गये, शायद उन्हें यहीं आस-पास ही जाना होगा, मैं भी अपना बैग उठा अपने घर चलने की सोच ही रहा था की मैंने देखा वह महिला धीरे-धीरे चलती हुई मेरे बगल में आ कर खड़ी हो गयीं, उसके चेहरे पर डर और घबराहट साफ दिखाई दे रही थी, मैंने दो चाय लाने का आर्डर किया, उस महिला ने कुछ नहीं कहा चुप-चाप चाय का कप ले कर वहीं बेंच पर बैठ गयी, फिर शुरू हुआ बातो का सिलसिला, मैंने पूछा- आज आप अकेली है ? आपकी सहेली नहीं आयीं है क्या?

उस महिला ने जवाब दिया- “ हाँ, आज वो नहीं आयीं थीं,

“ आपकी बस छुट गयी ?” उसने धीरे से कहा- “ हाँ ”

आप टीचर हैं ? उसने हाँ में सर हिलाया,

तभी बस कंडक्टर ने आवाज लगाई, वह बस में जा कर बैठ गयी, मैंने देखा वे चारो लड़के भी बस में चढ़ रहे थे, मैंने चाय के पैसे दिए और ना जाने किस भावना में बह कर अपना बैग उठाया और दोबारा से बस में चढ़ गया, और उस महिला के सीट के पास जा कर पूछा- “क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ? ”

उसने सर उठा कर मेरी ओर देखा और हँस कर बोली- “ जी बिलकुल ”

मैं उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया, बस अपनी रफ्तार से बढ़ने लगी, तभी उन चारो में से एक लड़के ने बड़े ही भद्दे अंदाज में जोर से बोला – “ बस में ही सेटिंग हो गयी क्या ? क्या किस्मत पायी है साहब, हमलोगन की भी किस्मत खोल दीजिये, ” इतना बोल कर वे चारो जोर-जोर से हँसने लगे, ” जिस बात का मुझे डर था वही हुआ, इन लोगो की नियत ठीक नहीं लग रही थी, मैं अंदर तक डर गया, मैं मन ही मन सोच रहा था, ना जाने मैं किस लफड़े में फंस गया, ये चार मैं अकेला इन सब का क्या बिगाड़ लूँगा, फिर भी मैं इन्हें अकेले भी तो नहीं छोड़ सकता था, अब जो होगा देखा जायेगा, अपने डर पर काबू करते हुए, उपर से खुद को नार्मल दिखाते हुए, उनकी बातो को इग्नोर किया, और पाकेट से मोबाईल निकाल कर अपने हाथों में ले लिया, उसमे 100 नंबर डायल पर रख लिया मैंने, इसके अलावा और कोई आप्सन भी नहीं था मेरे पास, तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी, बस का कंडक्टर आया और जोर से चिल्लाया- “ बस रोक ,बस रोक ”

मैंने देखा उसके हाथ में लोहे का बड़ा रिंच था, उसके पीछे-पीछे दो और आदमी बस में चढ़ गये,थोड़ी देर में बस रुक गयी, मैं भी हडबडा कर खड़ा हो गया, बस कंडक्टर ने उन चारो से कहा- “आप लोगो का स्टोपेज पीछे ही रह गया, आप लोगों ने वहीं तक का टिकट लिया था, इसलिए आप लोग यही उतर जाईये, उन चारो लड़के में से एक लड़के ने भद्दी गाली देते हुए बोला-“ पहचान नहीं रहा क्या बे जो तू यहाँ मुझे नीचे उतरने को बोल रहा हैं,” उसके मुहँ से शराब की बदबू आ रही थी, लेकिन कंडक्टर भी कम नहीं था उसने आओ देखा ना ताव दो थप्पड़ खिंच कर उस लड़के को दे दिया, वह लड़का थप्पड़ पड़ते ही बिलबिला उठा और कंडक्टर से हाथा-पाई पर उतर आया, तभी दूसरा लड़का   बीच बचाव करने लगा, बोला- “ कंडक्टर साहब हम यहाँ से कैसे जा पाएंगे, आप ऐसा कीजिये की हमारा बाईपास तक का टिकट बना दीजिये, ” बस कंडक्टर थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला- “ठीक है तुम लोग पीछे जा कर बैठ जाओ, ” वे चारो चुप-चाप पीछे जा कर बैठ गये, बस अपने रफ्तार से आगे बढ़ने लगी, 20 मिनट में उस महिला का स्टोपेज आ गया, स्टोपेज पर मोटरसाइकिल से पहले से ही कोई उनका इन्तजार कर रहा था,उन्होंने पहले ही किसी को बुला लिया था, शायद उनके पतिदेव थे, वे चुप-चाप बस से उतर कर मोटरसाइकिल के पीछे बैठ गयी, उन्होंने मुहँ से तो कुछ नहीं कहा लेकिन उनकी आँखों में कृतध्नता के भाव साफ झलक रहे थे, मैं भी बस से नीचे उतर गया, यहाँ से मैं अपने घर कैसे जाऊ ये सोच रहा था, क्यों की वापसी के लिए कोई वाहन मिलेगा इसकी उम्मीद नहीं थी, किसी को मदद के लिए बुलाना पड़ेगा, यही सोच कर मोबाईल निकाल कर दोस्त का नंबर डायल करने लगा, तभी मुझे जानी-पहचानी आवाज सुनाई पड़ी, मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वही बस कंडक्टर मोटरसाइकिल से था, बोला- “ बैठिये सर मैं आपको छोड़ता हुआ अपने गाँव चला जाऊंगा, ” मैं चुप-चाप मोटरसाइकिल के पीछे बैठ गया, मैंने उस कंडक्टर से कहा- “ अरे भाई तुमने तो आज कमाल कर दिया, लेकिन तुम्हारा तो रोज का आना-जाना है, कल को कुछ हो गया तो,”

उसने हँस कर कहा- अरे सर ऐसे-ऐसे दो चार लोगो से तो हमारा रोज सामना हो जाता, यात्री को सही सलामत घर तक पहुँचाना हमारा काम ही नहीं हमारा कर्तव्य भी हैं, ऐसे सर आपको डर नहीं लगा आप अकेले और ये चार,”

उसकी बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी, मैंने हँस कर कहा- “डर किसको नहीं लगता भाई डर सभी को लगता है लेकिन वो कहते हैं डर के आगे जीत है,

मेरी बाते सुन कर वह ठहाका लगा कर हँसने लगा, थोड़ी देर में वह बोला- “ लीजिये सर आपका स्टोपेज आ गया, मोटरसाइकिल से नीचे उतर कर मैंने उसे धन्यवाद कहा और अपने घर की ओर जाने लगा, तभी उस कंडक्टर ने कहा- “ एक बात कहूँ सर आप जैसे लोगो के कारण ही इंसानियत जिन्दा हैं, नहीं तो इन जैसे लोगो ने तो हमारी बच्चियों का जीना मुश्किल कर दिया है,

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