पटना रैली की ऐतिहासिक नाकामी के बाद जन सुराज की रणनीति में बदलाव — अब प्रखंड व अनुमंडल स्तर की भीड़ से साधी जा रही है सियासी नैया
पटना, 25 जून | न्यूज़ लहर ब्यूरो
राजधानी पटना के गांधी मैदान में आयोजित ‘बदलाव रैली’ को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे, लेकिन हकीकत में वह रैली प्रशांत किशोर की राजनीतिक यात्रा की सबसे बड़ी असफलताओं में गिनी जा रही है। अपेक्षित भीड़ न जुटने, मीडिया में नकारात्मक छवि उभरने और जमीनी कार्यकर्ताओं में हताशा के बाद अब जन सुराज ने अपने अभियान की दिशा बदली है।
अब प्रशांत किशोर और उनकी टीम प्रखंड और अनुमंडल स्तर की छोटी लेकिन “कंट्रोल्ड” सभाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इन सभाओं में भीड़ जुटाने की ज़िम्मेदारी JSPT (जन सुराज प्रोफेशनल टीम) के फुल टाइम कार्यकर्ताओं और उन संभावित उम्मीदवारों को दी गई है जिन्होंने पहले ही आवेदन शुल्क के रूप में 21000 जमा किया है।
मीडिया मैनेजमेंट और “भ्रम का माहौल”
जन सुराज की आधिकारिक सोशल मीडिया टीम और प्रशांत किशोर द्वारा प्रशिक्षित व वित्त-पोषित यूट्यूब चैनल्स पर इन सभाओं की एंगल-बद्ध वीडियो शूटिंग और “फोकस्ड फ्रेमिंग” के ज़रिए यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि बड़ी संख्या में लोग अब भी आंदोलन से जुड़े हुए हैं।
हर सभा के बाद सोशल मीडिया पर यह प्रचारित किया जा रहा है कि “अमुक स्थानीय नेता अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ जन सुराज में शामिल हो गए” — लेकिन इन दावों का कोई स्वतंत्र सत्यापन नहीं हो रहा है।
भीड़ जुटाने का नया मॉडल: जिम्मेदारी और दबाव
रिपोर्टों के अनुसार, स्थानीय सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए JSPT कर्मियों पर लक्ष्य निर्धारित कर दिए गए हैं, वहीं जिन लोगों ने जन सुराज से संभावित प्रत्याशी बनने के लिए आवेदन किया है, उनसे लोग लाने और लॉजिस्टिक सपोर्ट की अपेक्षा की जा रही है।
एक संगठन से जुड़े पूर्व कार्यकर्ता के अनुसार, “अब आंदोलन नहीं, बल्कि कार्यक्रम में उपस्थिति सुनिश्चित करने की प्रशासनिक कवायद चल रही है। यह वही मॉडल है जो पुरानी पार्टियां अपनाती रही हैं।”
खोखले दावे बनाम जमीनी हकीकत
सवाल यह है कि क्या “बड़ी-बड़ी घोषणाओं और फोटोशूट आधारित राजनीति” से बिहार की राजनीति में कोई ठोस बदलाव आ सकता है? पटना रैली के बाद से ही जन सुराज के कई पुराने और वैचारिक कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
एक वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “जहां सिद्धांत, अनुशासन और संघर्ष की जगह दिखावे और संसाधन आधारित राजनीति ले ले, वहां किसी नए विकल्प की उम्मीद करना भ्रम है।”
निष्कर्ष
प्रशांत किशोर का यह नया तरीका — “प्रखंडों में भीड़, सोशल मीडिया पर प्रचार और संभावित प्रत्याशियों पर निर्भरता” — एक स्पष्ट संकेत है कि जन सुराज अब जनांदोलन नहीं, बल्कि चुनावी तैयारी के सांचे में खुद को ढाल रहा है।
लेकिन यह बदलाव, क्या बदलाव लाएगा — यह अभी भी एक खुला सवाल है।