Saturday, September 13, 2025
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महागठबंधन की तस्वीर ने खोला राजनीतिक समीकरणों का राज

अजय कुमार 

बिहार की राजनीति में तस्वीरें सिर्फ़ राजनीतिक कार्यक्रम की झलक नहीं होतीं, बल्कि सत्ता और नेतृत्व का प्रतीकात्मक संदेश भी देती हैं। हाल ही में सामने आई एक तस्वीर ने महागठबंधन के भीतर की ताक़त, प्राथमिकताएँ और उपेक्षाएँ सब कुछ उजागर कर दिया है।

इस तस्वीर में ड्राइविंग सीट पर पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव बैठे हैं। उनके ठीक साथ खड़े हैं कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी। वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को भी प्रमुखता के साथ सामने की पंक्ति में जगह मिली है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि वाम दलों के नेताओं को तस्वीर में पीछे खड़ा किया गया।

सत्ता का प्रतीकात्मक संदेश

ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी यादव की मौजूदगी यह साफ़ करती है कि महागठबंधन की असली कमान उनके हाथों में है। राहुल गांधी का साथ खड़ा होना साझेदारी का संकेत तो देता है, मगर यह बराबरी की साझेदारी नहीं बल्कि सहयोगी की भूमिका तक सीमित है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और मुकेश सहनी की प्रमुखता बताती है कि महागठबंधन जातीय और सामाजिक समीकरण साधने में इन्हें अहम मानता है।

वाम दल: समर्थन से उपेक्षा तक

2020 के विधानसभा चुनाव में वाम दलों ने महागठबंधन को अप्रत्याशित ताक़त दी थी। सीपीआई (एमएल), सीपीआई और सीपीएम ने 16 सीटें जीतकर विपक्ष को नई ऊर्जा दी थी। विधानसभा में वाम दलों ने बेरोज़गारी, शिक्षा, किसान-मज़दूर और स्वास्थ्य जैसे सवालों पर लगातार आवाज़ बुलंद की। इसके बावजूद इस तस्वीर में उनकी उपेक्षा उनके राजनीतिक हैसियत का प्रतीक बन गई।

लालूवाद और वामपंथ का पुराना टकराव

बिहार की राजनीति का इतिहास बताता है कि लालू प्रसाद यादव के दौर से ही वाम दल लगातार हाशिये पर जाते रहे। पिछड़े-दलित समीकरण को अपने पक्ष में संगठित कर लालू ने वाम राजनीति के आधार को तोड़ा और उसे सीमित कर दिया। अब तेजस्वी यादव भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं—जहाँ वाम दलों से समर्थन तो लिया जाता है, लेकिन बराबरी की भूमिका उन्हें कभी नहीं दी जाती।

आगे का सवाल

इस तस्वीर ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाम दल महागठबंधन में सिर्फ़ “समर्थन” की भूमिका निभाते रहेंगे या फिर जनता के बीच अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश करेंगे? बिहार में रोज़गार, शिक्षा, किसान-मज़दूर और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर वाम दलों की पकड़ है, लेकिन गठबंधन की राजनीति में वे अपने ही एजेंडे से दूर होते जा रहे हैं।

महागठबंधन की यह तस्वीर एक प्रतीक है—तेजस्वी यादव सत्ता के केंद्र में हैं, कांग्रेस और वीआईपी जातीय समीकरण के कारण अहमियत पा रहे हैं, जबकि वाम दल पीछे खड़े होकर दर्शक की भूमिका निभा रहे हैं। जब तक वाम दल अपनी ताक़त पर भरोसा नहीं करेंगे, तब तक हर तस्वीर में वे पीछे ही नज़र आएँगे।

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