Sunday, July 27, 2025
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पटना में बाल विवाह का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट तक: किशोरी की याचिका पर माता-पिता के खिलाफ एफआईआर, प्रशासन सख्त

पटना में बाल विवाह का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट तक: किशोरी की याचिका पर माता-पिता के खिलाफ एफआईआर, प्रशासन सख्त

बिहार की राजधानी पटना से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां 16 वर्षीय किशोरी को उसके माता-पिता ने जबरन 32 वर्षीय युवक से विवाह करा दिया। यह विवाह पिछले वर्ष 9 दिसंबर को पटना के नाउबटपुर क्षेत्र में संपन्न हुआ था। विवाह के बाद से किशोरी को घरेलू हिंसा और अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ रहा था, जिसके विरोध में उसने साहस दिखाते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।

किशोरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उसे दिल्ली में पुलिस सुरक्षा देने के आदेश दिए, बल्कि पटना जिला प्रशासन को भी सख्त कार्रवाई करने को कहा। कोर्ट के निर्देश के बाद पटना पुलिस ने बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA, 2006) के अंतर्गत किशोरी के माता-पिता के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।

किशोरी ने कोर्ट में बताया कि वह पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन उसके परिवार ने उस पर शादी का दबाव बनाते हुए विवाह करा दिया। साथ ही, विवाह के पीछे आर्थिक मजबूरियों और पारिवारिक कर्ज का हवाला भी दिया गया।

पटना जिला प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए विशेष जांच दल (SIT) गठित की है, जो न केवल किशोरी के माता-पिता की भूमिका की जांच कर रही है, बल्कि विवाह आयोजन में शामिल पंडित, गवाह और अन्य सहयोगियों की भी तलाश कर रही है। जांच के दौरान यह भी सामने आया है कि विवाह में कोई आयु प्रमाणपत्र या वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए थे।

प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, यह मामला अब बिहार में बाल विवाह के खिलाफ एक नजीर बन सकता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सीधे हस्तक्षेप करते हुए नाबालिग की सुरक्षा सुनिश्चित की है और राज्य को बाल विवाह पर सख्त कदम उठाने की चेतावनी दी है।

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की और 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के का विवाह कानूनन अमान्य माना जाता है। इस अधिनियम के तहत दोषियों को सज़ा और जुर्माना दोनों हो सकता है। किशोरी की याचिका के आलोक में यह मामला भारतीय न्यायिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण सामाजिक हस्तक्षेप बनता जा रहा है।

पटना पुलिस और जिला प्रशासन ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए केवल 48 घंटों के भीतर प्राथमिकी दर्ज कर दी और अन्य संबंधित व्यक्तियों की पहचान में जुट गए हैं। पीड़िता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उसे सुरक्षित स्थान पर रखा गया है।

यह मामला केवल एक किशोरी की त्रासदी नहीं, बल्कि बिहार में व्याप्त बाल विवाह की कुप्रथा और उससे उपजे सामाजिक अन्याय का प्रतीक बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप, प्रशासन की तत्परता और पीड़िता का साहस – यह तीनों मिलकर भविष्य में ऐसे मामलों पर लगाम लगाने में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।

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