नवादा की राजनीति में सियासी हलचल : राज बल्लभ यादव की नए ठिकाने पर निगाहें
अजय कुमार
नवादा जिले की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। बाहुबली छवि वाले पूर्व विधायक राज बल्लभ यादव के राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएँ गरम हैं। लंबे समय तक राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खासमखास माने जाने वाले राज बल्लभ, हाल ही में अदालत से बड़ी राहत मिलने के बाद एक बार फिर सक्रिय राजनीति के केंद्र में लौट आए हैं।
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अदालत से मिली राहत, राजनीति में नई संजीवनी
राज बल्लभ यादव अपने विधायक कार्यकाल के दौरान बलात्कार जैसे गंभीर आरोप में दोषी ठहराए गए थे और निचली अदालत ने उन्हें सज़ा भी सुनाई थी। इस फैसले से उनका राजनीतिक करियर लगभग खत्म माना जाने लगा था।
लेकिन हाल ही में उच्च न्यायालय ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। इसे समर्थक “न्याय की जीत” बता रहे हैं, जबकि विरोधी इसे “संयोग” और “राजनीतिक चमत्कार” मानकर सवाल उठा रहे हैं। फिर भी इस फैसले ने यादव की सियासत में नई ऊर्जा भर दी है और उन्हें राजनीतिक पुनर्वास का मौका मिल गया है।
टिकट और बगावत का खेल
नवादा की राजनीति में यादव परिवार की पकड़ पुरानी रही है। राज बल्लभ की पत्नी वर्तमान में विधायक हैं, जबकि उनके भतीजे के लिए संसदीय टिकट की मांग की गई थी।
लेकिन समीकरण बिगड़ गए। राजद नेतृत्व ने टिकट जदयू से आए कुशवाहा गुट को सौंप दिया। नाराज होकर भतीजे ने निर्दलीय चुनाव लड़ लिया। नतीजा यह हुआ कि राज बल्लभ भी चुनाव हार गए और राजद प्रत्याशी भी पराजित हुए।
तेजस्वी पर सीधा वार
हाल ही में राज बल्लभ यादव की पत्नी ने खुलकर तेजस्वी यादव पर टिकट बेचने का आरोप लगाया। इस बयान ने राजद की अंदरूनी राजनीति में खलबली मचा दी। स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग असंतोष में है। यही नाराज़गी अब सत्ता पक्ष यानी जदयू के लिए अवसर के रूप में देखी जा रही है।
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नवादा में यादव फैक्टर और बाहुबली राजनीति
नवादा जिला लंबे समय से यादव राजनीति का गढ़ रहा है। यहाँ सामाजिक समीकरण में यादव समुदाय का वोट निर्णायक साबित होता है।
पंचायत से लेकर विधानसभा तक यादव परिवार का दबदबा रहा है।
बाहुबली छवि के बावजूद राज बल्लभ की पकड़ बनी रही है।
लालू प्रसाद यादव के करीबी चेहरे के तौर पर राजद में उनका कद हमेशा अहम रहा है।
जदयू का समीकरण और राजद की चुनौती
अब कयास लगाए जा रहे हैं कि राज बल्लभ यादव कभी भी जदयू का दामन थाम सकते हैं। यह स्थिति कई मायनों में महत्वपूर्ण होगी—
1. राजद की कमजोरी : यादव परिवार अगर जदयू में शामिल हो गया तो नवादा में राजद की पकड़ कमजोर पड़ जाएगी।
2. जदयू का फायदा : नीतीश कुमार को एक ऐसे “ग्राउंड नेटवर्क” का सहारा मिलेगा, जो चुनाव में सीधा वोट बैंक में बदल सकता है।
3. यादव बनाम यादव समीकरण : राजद ने इस खतरे को भाँपते हुए पूर्व विधायक कौशल यादव और उनकी पत्नी को पार्टी में शामिल कर लिया है। अब स्थानीय राजनीति में दो यादव छत्रप एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरेंगे।
4. स्थानीय राजनीति पर असर : निर्दलीय और बागी फैक्टर को साधने में जदयू को बढ़त मिल सकती है।
अब निगाहें अगले कदम पर
फिलहाल राज बल्लभ यादव के अगले कदम को लेकर अटकलों का दौर जारी है। स्थानीय राजनीति से जुड़े जानकार मानते हैं कि उनकी जदयू में एंट्री अब केवल औपचारिकता भर रह गई है।
अगर ऐसा होता है तो नवादा की राजनीति में यह बड़ा उलटफेर साबित होगा, जिसका असर न केवल विधानसभा बल्कि आने वाले संसदीय चुनाव की तस्वीर पर भी साफ दिखाई देगा।
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नवादा की राजनीति इस समय यादव समीकरण के इर्द-गिर्द घूम रही है। अदालत से मिली राहत ने राज बल्लभ यादव को फिर से प्रासंगिक बना दिया है। राजद और जदयू, दोनों ही पार्टियों के लिए उनका अगला कदम राजनीतिक संतुलन तय करेगा।
अगर वे राजद में रहते हैं तो संगठन में असंतोष और टूट-फूट जारी रहेगी।
अगर वे जदयू में जाते हैं तो नीतीश कुमार को यादव वोट बैंक में अप्रत्याशित बढ़त मिल सकती है।