Friday, September 12, 2025
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नेपाल में राजनीतिक संकट: क्या एक नया ‘आंदोलन’ बदलाव लाएगा?

नेपाल में राजनीतिक संकट: क्या एक नया ‘आंदोलन’ बदलाव लाएगा?

पटना: नेपाल में प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे और उनके देश छोड़कर चले जाने के बाद राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल चरम पर है। देश में चल रहे Gen-Z (युवा) आंदोलन ने सरकार को घुटनों पर ला दिया है, जिसके बाद अब नेपाली सेना ने कमान संभाल ली है। यह स्थिति नेपाल को एक बड़े बदलाव के मोड़ पर ले आई है।

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हिंसा और अराजकता का दौर

ओली के इस्तीफे के बाद भी देश में स्थिति सामान्य नहीं हुई है। गृह मंत्री रमेश लेखक के इस्तीफे और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद हिंसा और बढ़ गई है। प्रदर्शनकारियों द्वारा कई जेलों में आग लगाने और 13,000 से अधिक कैदियों के फरार होने की खबरों ने सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। इन घटनाओं से यह साफ है कि यह आंदोलन सिर्फ राजनीतिक बदलाव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था के प्रति युवाओं के गुस्से को दिखाता है।

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लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल

प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगों में प्रतिनिधि सभा को भंग करना और जल्द चुनाव कराना शामिल है। वहीं, युवा वर्ग के बीच काठमांडू के मेयर बालेन शाह को प्रधानमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। यह दिखाता है कि लोग पारंपरिक राजनीतिक दलों और नेताओं से निराश हो चुके हैं और वे एक नए नेतृत्व की तलाश में हैं। भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों ने भी शांति बहाली की अपील की है, जिससे इस संकट की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

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आगे की राह

नेपाल इस समय एक चौराहे पर खड़ा है। प्रधानमंत्री पद के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम सामने आना एक अंतरिम समाधान की ओर इशारा करता है, लेकिन क्या यह कदम युवाओं के गुस्से को शांत कर पाएगा? यह बड़ा सवाल है। अगर सरकार प्रदर्शनकारियों की मांगों पर ध्यान नहीं देती, तो स्थिति और भी विस्फोटक हो सकती है। फिलहाल, नेपाल की सेना और नई बनने वाली सरकार के सामने देश में शांति और व्यवस्था बहाल करने की सबसे बड़ी चुनौती है।

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