पटना नगर निगम की 9वीं बोर्ड बैठक में शिशिर कुमार द्वारा पार्षदों के साथ की गई गाली-गलौज, हाथापाई और बाउंसरों के साथ दबंगई ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — क्या महापौर के बेटे के लिए कानून और लोकतंत्र बेमायने हो गए हैं?
आश्चर्यजनक बात यह है कि शिशिर कुमार न तो कोई निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, और न ही पटना नगर निगम के किसी वार्ड से पार्षद। इसके बावजूद वे लगातार नगर निगम की बैठकों में हथियारबंद बाउंसरों के साथ पहुंचते रहे हैं, अधिकारियों को धमकाते, और जनप्रतिनिधियों के साथ मारपीट तक करते रहे हैं।
महापौर सीता साहू पर लगाए गए आरोप निराधार: कार्यवाही में छेड़छाड़ का कोई प्रमाण नहीं
‘प्रॉक्सी पावर’ का खुला खेल
नगर निगम की महापौर सीता साहू, जो शिशिर कुमार की मां हैं, पर यह आरोप लगना अब आम हो चला है कि वे अपने पुत्र को बिना किसी संवैधानिक पद के निगम की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप की छूट दे रही हैं। यह न केवल लोकतंत्र की अवहेलना है, बल्कि संविधान के उस मूल भावना का भी अपमान है जो सत्ता को जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व से जोड़ती है।
नगर निगम के भीतर चर्चा है कि कई बार पार्षदों और अधिकारियों ने इस गैरकानूनी हस्तक्षेप की शिकायत की, लेकिन हर बार राजनीतिक प्रभाव और आंतरिक दबावों के चलते कार्रवाई नहीं हो सकी।
आपराधिक पृष्ठभूमि और सुरक्षा खतरा
आज की घटना पर पटना नगर निगम द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में साफ तौर पर उल्लेख है कि शिशिर कुमार पर हत्या सहित कई गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं:
आलमगंज थाना कांड संख्या 511/24 – हत्या का मामला
कोतवाली थाना कांड संख्या 207/25 – उप नगर आयुक्त से मारपीट
महिला पार्षद से अभद्रता और छेड़खानी के आरोप
इसके बावजूद उनका नगर निगम में बाउंसरों के साथ खुलेआम आना, और हथियारों का प्रदर्शन — क्या यह सुरक्षा एजेंसियों और प्रशासन की विफलता नहीं है?
लोकतंत्र के लिए खतरा
शिशिर कुमार का ऐसा व्यवहार और उनकी मां का मौन या संरक्षण, एक लोकतांत्रिक संस्था के भीतर ‘पारिवारिक तानाशाही’ को बढ़ावा देता है। यह न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया को दूषित करता है, बल्कि सत्यनिष्ठ पार्षदों की गरिमा और सुरक्षा पर भी सीधा प्रहार है।
अब जब पटना नगर निगम ने पहली बार उनके विरुद्ध प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करते हुए डीएम को निषेधाज्ञा लागू करने की अनुशंसा की है, तो यह एक अहम मोड़ साबित हो सकता है। पर सवाल अब भी वही है — क्या यह कार्रवाई टिकेगी या फिर यह भी किसी राजनीतिक ‘मैनेजमेंट’ की भेंट चढ़ जाएगी?
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निष्कर्ष:
शिशिर कुमार का नगर निगम में कोई संवैधानिक दर्जा नहीं होने के बावजूद उनका लगातार हस्तक्षेप, उनकी मां और महापौर सीता साहू की ‘मूक सहमति’ के बिना संभव नहीं। यह मामला केवल कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का है। यदि अब भी प्रशासन और जनप्रतिनिधि मौन रहे, तो आने वाले समय में नगर निगमें पारिवारिक जागीर बनकर रह जाएंगी।