भारत की राजनीति में अक्सर कुछ अप्रत्याशित घटित होता है—कभी अचानक, कभी रहस्यमय, और कई बार रणनीति के गहरे खेल के तहत। उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भी इसी श्रेणी में आता है।
आधिकारिक कारण: स्वास्थ्य… लेकिन क्या केवल यही?
धनखड़ साहब ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, और औपचारिक रूप से इसका कारण उनके स्वास्थ्य को बताया गया है। लेकिन भारतीय राजनीति में जब कोई वरिष्ठ पदाधिकारी ‘स्वास्थ्य कारणों’ का हवाला देता है, तो सियासी विश्लेषक इसकी तह में जाने लगते हैं।
धनखड़ कोई औपचारिक-प्रोटोकॉल तक सीमित उपराष्ट्रपति नहीं थे। उनका कार्यकाल कई विवादों और स्पष्ट वक्तव्यों से भरा रहा—खासकर न्यायपालिका पर उनके तीखे सवालों को लेकर।
न्यायपालिका से टकराव
उपराष्ट्रपति रहते हुए धनखड़ ने बार-बार न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाए:
उन्होंने अनुच्छेद 142 को “परमाणु मिसाइल” की संज्ञा दी।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को “सुपर-संसद” की संज्ञा देकर हलचल मचा दी।
इन टिप्पणियों ने उन्हें एक संवैधानिक टकराव के केंद्र में ला खड़ा किया। क्या यह इस्तीफा न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन पुनः स्थापित करने का प्रयास है?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि केंद्र सरकार को यह अंदेशा हो गया कि धनखड़ की तीव्र भाषा और रुख गठबंधन की रणनीति को जटिल बना सकते हैं। ऐसे में क्या उन्हें ‘संवैधानिक मर्यादा’ के नाम पर शांतिपूर्वक विदा कर दिया गया?
बिहार और चुनावी समीकरण
2025 में बिहार विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि धनखड़ का पद खाली करना एक रणनीतिक ‘स्पेस’ बनाना हो सकता है। क्या यह इस्तीफा किसी बिहारी चेहरे को उपराष्ट्रपति बनाने की तैयारी है?
संभावित नामों की चर्चा:
डॉ. हरिवंश – वर्तमान राज्यसभा उपसभापति और पत्रकारिता से राजनीति तक का लंबा सफर।
रामनाथ ठाकुर – कर्पूरी ठाकुर के पुत्र, जो पिछड़े वर्ग और भावनात्मक राजनीति का मजबूत प्रतीक हैं।
जातीय संतुलन और क्षेत्रीय गणित के लिहाज से ये दोनों नाम NDA के लिए लाभदायक विकल्प माने जा रहे हैं।
नीतीश कुमार का अधूरा वादा?
राजनीतिक गलियारों में एक और अटकल तैर रही है कि नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाए जाने का वादा किया गया था। हालांकि, हाल ही में उन्हें फिर से बिहार में NDA का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया गया है।
यह संभावना भले कमज़ोर हो, लेकिन राजनीति में वादों का इतिहास अक्सर “कहां निभे हैं वादे” के तर्ज पर ही चलता है।
राजनीति में ड्रामा जारी रहेगा
धनखड़ का इस्तीफा वास्तव में बीमारी के कारण है या एक रणनीतिक सियासी पैंतरा—इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है। लेकिन यह तय है कि आने वाले दिनों में दिल्ली से पटना तक सियासी घटनाक्रम तेजी से बदलेंगे।
जहां एक ओर भाजपा समर्थकों के लिए यह एक “आम बदलाव” भर है, वहीं विपक्ष इस घटनाक्रम को लेकर संविधानिक हस्तक्षेप और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठा सकता है।
धनखड़ साहब का इस्तीफा सिर्फ एक ‘स्वास्थ्य कारण’ से प्रेरित है या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति है—यह कहना जल्दबाज़ी होगी। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि यह इस्तीफा:
न्यायपालिका से टकराव को टालने,
बिहार में समीकरण साधने,
और आगामी चुनावी वर्ष में ‘संतुलन’ बिठाने का एक प्रयास हो सकता है।