बिहार में चल रहे Special Intensive Revision (SIR) कार्यक्रम के बीच एक नया राजनीतिक बवंडर खड़ा हो गया है। कांग्रेस महासचिव के. सी. वेणुगोपाल ने चुनाव आयोग पर गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए कहा है कि कांग्रेस जल्द ही इस संबंध में ठोस सबूत पेश करेगी। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है — तेजस्वी यादव के गहराते फर्जी मतदान पहचान पत्र विवाद से ध्यान भटकाने का प्रयास।
तेजस्वी यादव पर दो वोटर आईडी रखने का आरोप
हाल ही में राजद नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। उन्होंने इसे केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की साजिश बताया।
लेकिन इसी के जवाब में चुनाव आयोग ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह सनसनीखेज खुलासा किया कि तेजस्वी यादव के नाम पर दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में दो अलग-अलग वोटर आईडी कार्ड दर्ज हैं — जो भारतीय जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और चुनाव आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन है।
इस खुलासे के बाद मामला पलट गया और तेजस्वी यादव खुद सवालों के घेरे में आ गए। यदि यह आरोप सही पाया गया, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी संभव मानी जा रही है।
कांग्रेस का हमलावर नीति या बचाव?
तेजस्वी यादव के इस विवाद के कुछ ही घंटों बाद कांग्रेस नेता वेणुगोपाल का चुनाव आयोग पर हमला करना कई सवाल खड़े करता है।
क्या कांग्रेस वाकई में SIR प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर चिंतित है?
या यह हमला सिर्फ तेजस्वी यादव को घेर रहे संकट से ध्यान हटाने की कोशिश है?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि:
“जब किसी सहयोगी दल का बड़ा नेता फर्जीवाड़े के आरोपों में घिरता है, तो मुख्य गठबंधन दलों की ओर से संस्थाओं पर हमला होना आम राजनीतिक हथियार बन गया है।”
रणनीति या हताशा?
कांग्रेस द्वारा बार-बार चुनाव आयोग पर आरोप लगाना, जब उनके पास कोई ठोस दस्तावेज या सबूत सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, यह उनकी राजनीतिक हताशा का संकेत भी माना जा रहा है।
दूसरी ओर, राजद—जो बिहार में विपक्ष की धुरी है—के प्रमुख नेता तेजस्वी यादव पर अगर कानूनी कार्रवाई हुई, तो यह महागठबंधन की रणनीति और विश्वसनीयता दोनों पर गंभीर असर डालेगा।
तेजस्वी यादव पर दो-दो वोटर आईडी रखने के गंभीर आरोप अब केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी गूंजने लगे हैं।
कांग्रेस का चुनाव आयोग पर हमला इन आरोपों से ध्यान भटकाने की रणनीति भी हो सकती है।
आगामी दिनों में इस पूरे मामले की जांच और कांग्रेस द्वारा वादा किए गए तथ्यों का खुलासा बहुत कुछ तय करेगा — क्या वाकई यह लोकतांत्रिक संस्थाओं पर सवाल उठाने जैसा है या फिर एक सहयोगी की ढाल बनने की कोशिश?