अजय कुमार
बिहार की राजनीति इस समय एक नई करवट ले रही है। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और राजद ने संयुक्त रूप से ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की शुरुआत कर दी है। लेकिन जनसुराज आंदोलन के नेता प्रशांत किशोर का आरोप है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव यह यात्रा उनकी जनसुराज यात्रा के दबाव और असर में आकर उनके पदचिन्हों पर चलने को मजबूर हुए हैं।
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प्रशांत किशोर का आरोप
प्रशांत किशोर ने कहा कि उनकी जनसुराज पदयात्रा ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ी है। जनता के बीच जाकर वास्तविक मुद्दों को उठाने और “जन-आधारित राजनीति” की संस्कृति बनाने के बाद अब बड़े विपक्षी नेता भी इसी राह पर चलने लगे हैं। किशोर ने सीधे तौर पर दावा किया कि राहुल और तेजस्वी की यात्रा, जनसुराज की लोकप्रियता का प्रतिफल है।
‘वोटर अधिकार यात्रा’ : विपक्ष की ताकत का प्रदर्शन
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने 17 अगस्त 2025 को सारण जिले के सासाराम से इस यात्रा का आगाज़ किया।
अवधि : 16 दिन
दूरी : लगभग 1,300 किलोमीटर
जिले : 20 से अधिक
समापन : 1 सितंबर को पटना
इस यात्रा का मुख्य नारा है – “एक मत, एक व्यक्ति”। इसका मकसद है Special Intensive Revision (SIR) के नाम पर मतदाता सूची में हो रहे कथित फर्जीवाड़े और “वोट चुराने की कोशिशों” के खिलाफ आवाज़ उठाना। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग बीजेपी और आरएसएस के दबाव में काम कर रहा है और वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ हो रही है।
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सरकार और एनडीए का पलटवार
एनडीए नेताओं ने इस यात्रा को महज एक “राजनीतिक नाटक” करार दिया।
भाजपा : उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि कांग्रेस-राजद गठबंधन लोकतंत्र का मज़ाक बना रहा है।
जेडीयू : नेताओं का मानना है कि जनता को गुमराह करने की कोशिश हो रही है।
हम पार्टी के संतोष सुमन ने कांग्रेस और राजद से बूथ कैप्चरिंग और चुनावी हिंसा की पुरानी संस्कृति के लिए माफी मांगने की बात कही।
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लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल
राहुल गांधी ने अपने भाषणों में यह भी कहा कि 2023 में बने एक कानून ने चुनाव आयोग को जवाबदेही से लगभग मुक्त कर दिया है। अब आयोग सीधे तौर पर केंद्र सरकार के अधीन हो गया है। राहुल का दावा है कि यह स्थिति गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के अधिकारों पर सीधा हमला है।
जनसुराज बनाम पारंपरिक दल
प्रशांत किशोर का बयान इस पूरे घटनाक्रम को और दिलचस्प बना देता है। उनका कहना है कि उनकी जनसुराज यात्रा ने विपक्ष को नई राह दिखाने का काम किया है और कांग्रेस-राजद को मजबूरन जनता तक पहुँचने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा है।
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1. राजनीतिक दबाव स्पष्ट – प्रशांत किशोर की सक्रियता ने विपक्षी दलों को पारंपरिक रैलियों से हटकर “यात्रा राजनीति” अपनाने के लिए मजबूर कर दिया।
2. लोकतांत्रिक विमर्श का नया केंद्र – चुनाव आयोग, मतदाता सूची और वोट की सुरक्षा जैसे मुद्दे अब चुनावी बहस का हिस्सा बन गए हैं।
3. जनता की नजर में साख का सवाल – जनता यह तय करेगी कि यह यात्राएँ सच में लोकतंत्र की रक्षा का प्रयास हैं या फिर महज चुनावी नौटंकी।
4. एनडीए बनाम विपक्ष का ध्रुवीकरण – एनडीए इस यात्रा को “ड्रामा” कहकर खारिज कर रहा है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र बचाने की लड़ाई बता रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक परिदृश्य बेहद रोचक हो गया है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ जहाँ विपक्षी एकजुटता और चुनावी नैरेटिव का प्रतीक बन रही है, वहीं प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा ने इसे चुनौती दी है और खुद को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है।
राजनीति के इस “पदयात्रा संस्करण” में असली सवाल यही है कि जनता किस पर भरोसा करती है – स्थापित विपक्षी दलों पर या जनसुराज जैसे नए विकल्प पर।