सरकारी योजनाओं को पलीता लगाने वाले अफसरों पर निगरानी विभाग की बड़ी कार्रवाई
पश्चिम चंपारण (बेतिया) में भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया है। जिला मत्स्य पदाधिकारी पीयूष रंजन को निगरानी विभाग की टीम ने एक लाख रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया। यह रिश्वत प्रधानमंत्री मत्स्य योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी की राशि जारी करने के एवज में मांगी गई थी।
गिरफ्तारी की पूरी घटना
पीयूष रंजन पर आरोप था कि वे प्रधानमंत्री मत्स्य योजना के लाभार्थी से अनुदान राशि का 10 फीसदी (लगभग 1 लाख रुपये) रिश्वत की मांग कर रहे थे।
शिकायतकर्ता मुराद अनवर की मां योजना की लाभार्थी थीं। सब्सिडी फाइल पास कराने के लिए यह रिश्वत मांगी गई।
निगरानी विभाग को लिखित शिकायत मिलने पर सत्यापन किया गया और trap बिछाकर आरोपी अधिकारी को उसके कार्यालय में ही पकड़ लिया गया।
कार्रवाई के बाद की स्थिति
आरोपी अधिकारी को मौके से गिरफ्तार कर पटना ले जाया गया।
जिले भर में इस घटना के बाद भ्रष्टाचार को लेकर तीखी नाराज़गी है।
निगरानी विभाग के डीएसपी ने कहा कि शुरुआती पूछताछ के बाद आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है।
सरकारी योजनाओं को डसता भ्रष्टाचार
यह घटना बिहार के लिए कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह उस सड़े-गले सिस्टम की परत खोलती है जहाँ भ्रष्टाचार अब अपवाद नहीं बल्कि रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुका है।
केंद्र की मोदी सरकार हो या राज्य की नीतीश कुमार सरकार—दोनों ही सरकारें बार-बार किसानों, मत्स्य पालकों और पशुपालकों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और रोजगार देने के लिए योजनाएँ लाती रही हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य योजना भी इसी सोच की उपज है, ताकि गांव-गांव में मत्स्यपालन से आजीविका बढ़े और लोग आत्मनिर्भर हों।
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इन योजनाओं की फाइलें उन्हीं अफसरों की मेज पर अटक जाती हैं जो जनता की सेवा के बजाय अपनी जेबें भरने में लगे रहते हैं। इन विभागों के अधिकारी और कर्मचारी अक्सर गैंडे की चमड़ी जैसे बेशर्म हो चुके हैं—ना तो शिकायतों का उन पर असर होता है और ना ही जनता की पीड़ा से उनका कोई सरोकार।
सरकारी नौकरी मिलने के बाद इनका एक ही लक्ष्य रह जाता है—हर दिशा से, हर मौके पर, हर तरह से अवैध कमाई। ऐसे में चाहे केंद्र कितनी भी योजनाएँ लाए और राज्य सरकार कितनी भी घोषणाएँ करे, जब तक विभागीय भ्रष्टाचार पर सख्त चोट नहीं होगी, तब तक योजनाएँ सिर्फ कागजों पर और भ्रष्ट अफसरों की तिजोरी में ही सिमट कर रह जाएँगी।
बेतिया की यह गिरफ्तारी सिर्फ एक अधिकारी की कहानी नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की हकीकत है। सवाल यह है कि क्या निगरानी विभाग की ऐसी छिटपुट कार्रवाइयों से व्यवस्था सुधरेगी, या फिर ज़रूरत है उस सिस्टम-शेकिंग सुधार की जिससे भ्रष्टाचार की जड़ ही हिल सके।