पटना में हर साल बरसात का मौसम जैसे एक नई आपदा बनकर आता है। पानी में डूबे मोहल्ले, जाम की भयावह स्थिति, नालों का उफान और इसमें बुनियादी सुविधाओं का अभाव — यह सब अचानक नहीं हुआ।
सवाल यह है कि आखिर इस बदहाली के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या यह सिर्फ एक “प्राकृतिक आपदा” है या फिर वर्षों से जमा होती जा रही लापरवाही, भ्रष्टाचार और नियोजनहीनता का परिणाम?
1. राजनीतिक दल और उनके नियोजन शून्य नेतागण
पटना की बरसाती तबाही के पीछे सबसे बड़ा योगदान उन नेताओं का है जिन्होंने सालों से सत्ता में रहते हुए भी शहर की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया। चुनाव के समय गली-गली में घूमकर वादे करने वाले ये नेता सत्ता में आते ही जनता की समस्याओं से मुंह मोड़ लेते हैं।
पटना के मास्टर प्लान की बात करें तो 2031 तक के लिए एक विस्तृत नियोजन तैयार किया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश योजनाएं फाइलों में दबी पड़ी हैं। न तो जलनिकासी की व्यवस्था में कोई ठोस सुधार हुआ, न ही ट्रैफिक मैनेजमेंट में।
2. भ्रष्ट और स्वार्थी प्रशासनिक अधिकारी
राजनीतिक प्रभाव में कोई भी अनैतिक काम करने वाले अधिकारियों ने सिर्फ कागजों पर योजनाओं को आगे बढ़ाया। अवैध निर्माण पर फील्ड में निरीक्षण हो या कार्रवाई — सब कुछ ‘प्रोटोकॉल’ और ‘ऊपर से आदेश’ के नाम पर टाल दिया गया।
बरसात के पहले नालों की सफाई हर साल की तरह कागजों में हो जाती है, लेकिन जब पहली तेज बारिश होती है तो गंदगी का जो आलम बाहर आता है, वो प्रशासन की पोल खोल देता है।
3. अवैध निर्माण माफिया और उनकी संरक्षक व्यवस्था
पटना में अवैध निर्माण का खेल खुलेआम चलता है। जलनिकासी के प्राकृतिक रास्तों पर मकान, दुकानों और बहुमंज़िला इमारतों का निर्माण हुआ। इस सबके पीछे वही माफिया है जिसे स्थानीय नेताओं और अधिकारियों की पूरी शह मिली हुई है।
राजेंद्र नगर, कंकड़बाग, गर्दनीबाग, आशियाना, बेउर, बोरिंग रोड जैसे कई इलाके आज जलजमाव के स्थायी शिकार हैं क्योंकि वहां के नाले या तो पाट दिए गए या उन पर निर्माण कर दिए गए।
4. पटना की नियोजन विफलताएं
पटना का शहर विकास प्राधिकरण (PDA) और शहरी विकास विभाग कई वर्षों से शहर के मास्टर प्लान को लागू करने में असमर्थ रहे हैं।
मास्टर प्लान 2031 में प्रस्तावित रिंग रोड, सिटी बाईपास, और ड्रेनेज रिडिज़ाइन अब भी अधर में लटके हैं।
गंगा नदी के किनारे वाटरफ्रंट डेवलपमेंट योजना, स्मार्ट सिटी योजना में शामिल इलाकों का डेवलपमेंट — सब सिर्फ कागजों पर
जल-जमाव से निपटने के लिए बनाए गए स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज सिस्टम आज भी अपूर्ण हैं। कई जगह तो ड्रेनेज की दिशा तक गलत है, जिससे जल निकासी नहीं हो पाती।
5. भुगत कौन रहा है? – आम नागरिक
इन सबका खामियाजा भुगत रहा है सिर्फ आम नागरिक। किसी का घर पानी में डूबा, तो किसी की दुकानें। स्कूली बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं — सब सड़क पर या घुटनों तक पानी में फंसे हुए हैं।
पटना के लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि यह सजा सिर्फ बारिश की नहीं है, यह सजा है — नेताओं की लापरवाही, अफसरों की उदासीनता और सिस्टम के पतन की।
यह समय सिर्फ दोषारोपण का नहीं है, यह समय जवाबदेही तय करने का है। पटना के नागरिकों को यह सवाल पूछना ही होगा:
क्या हर वर्ष पटना के २०० से अधिक मोहल्लों में बरसात में जलजमाव की जलनिकासी सिर्फ मोटर पंप से ही संभव है? कोई कोई स्थाई निदान नहीं?
अगर यह सवाल नहीं पूछा गया, तो अगली बरसात में फिर यही जलप्रलय होगा, और हम हर बार किसी और के पाप की सजा भुगतते रहेंगे।