बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो चुकी हैं। इसी क्रम में राज्य निर्वाचन आयोग ने विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SSR) 2025 अभियान की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य राज्य की मतदाता सूची को अद्यतन कर फर्जी, दोहराए गए, मृत, अवैध और विदेशी नागरिकों के नामों को हटाना और छूटे हुए पात्र मतदाताओं के नामों को जोड़ना है।
इस प्रक्रिया को लेकर जहां चुनाव आयोग पूरी पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्य कर रहा है, वहीं विपक्ष विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इस अभियान को एक राजनीतिक हथियार बताकर विरोध के स्वर बुलंद कर रहे हैं।
आयोग की स्पष्ट योजना: सूची को बोगस और विदेशी नामों से मुक्त करना
भारतीय निर्वाचन आयोग के SIR आदेश के पृष्ठ 3, अनुच्छेद 7(5) के अनुसार, 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक सभी नागरिकों और राजनीतिक दलों को यह अवसर दिया जा रहा है कि वे:
फॉर्म 6 के माध्यम से नए योग्य मतदाताओं का नाम जुड़वाएं
फॉर्म 7 के जरिए मृत, डुप्लीकेट, अन्य क्षेत्र के, अवैध और विदेशी नागरिकों के नाम हटवाएं
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यह पूरा अभियान हर विधानसभा क्षेत्र में BLO और ERO के स्तर पर संचालित किया जा रहा है और राजनीतिक दलों को भी उनके BLAs के माध्यम से भागीदारी का अवसर दिया गया है।
क्या डर है विपक्ष को?
चुनाव आयोग के इस संवैधानिक अभियान के विरोध में तेजस्वी यादव ने यहां तक कह दिया है कि अगर यह प्रक्रिया नहीं रोकी गई तो विधानसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा।
विपक्ष द्वारा रोज़ नए-नए तर्क दिए जा रहे हैं — कभी इसे “जनसंहार” कहा जा रहा है तो कभी “जातीय सफाया”। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर यह प्रक्रिया कानूनी और सबके लिए समान है, तो आखिर विपक्ष क्यों डर रहा है?
क्या यह आशंका है कि बोगस मतदाता, रोहिंग्या-बांग्लादेशी अवैध नागरिक या डुप्लीकेट नामों के हटने से उनके वोट बैंक में गिरावट आएगी?
आयोग की पारदर्शिता और सभी दलों को आमंत्रण
इस पूरे अभियान के दौरान चुनाव आयोग और राज्य के सभी 38 जिलों के डीईओ (जिला निर्वाचन पदाधिकारी) ने 243 विधानसभा क्षेत्रों में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से बैठकों के माध्यम से सुझाव लिए हैं।
चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि:
कोई योग्य मतदाता नहीं छूटेगा
कोई भी अवैध मतदाता नहीं बचेगा
यह प्रक्रिया राजनीतिक हस्तक्षेप से पूर्णतः मुक्त और निष्पक्ष होगी
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तेजस्वी यादव को आखिर किसकी चिंता है?
यदि मतदाता सूची से मृत, फर्जी, डुप्लीकेट, बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, रोहिंग्या नागरिकों के नाम हटाए जा रहे हैं, तो कोई भी राष्ट्रभक्त राजनीतिक दल इसका स्वागत करेगा।
लेकिन यदि कोई नेता इसका विरोध करता है, तो इसका सीधा संकेत यह है कि वह इन अवैध वोटों के सहारे सत्ता तक पहुंचने की रणनीति बना रहा है।
बिहार की जनता यह सवाल पूछने को मजबूर है —
क्या तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनने का सपना बोगस, रोहिंग्या और बांग्लादेशी वोटों के बलबूते देख रहे हैं?
क्या यह विरोध लोकतंत्र को मजबूत करने का है या अवैध तंत्र को बचाने का?
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आगामी विधानसभा चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि सत्य और असत्य के बीच की लड़ाई बनते जा रहे हैं। बिहार की जनता को अब जागरूक होकर तय करना होगा कि वे स्वच्छ लोकतंत्र चाहती है या संख्याबल के नाम पर फर्जीवाड़ा।