चंपारण में गांधी वंशज तुषार गांधी को अपमानित कर कार्यक्रम से निकाला गया
मनोज कश्यप
महात्मा गांधी के पड़पोते और सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी को बिहार के चंपारण में एक कार्यक्रम के दौरान अपमानित कर मंच से उतार दिया गया और पंचायत भवन से बाहर जाने को कह दिया गया। चौंकाने वाली यह घटना रविवार को पश्चिमी चंपारण के तुरकौलिया में हुई, जहां वे गांधी विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की पदयात्रा पर निकले थे।
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तुषार गांधी अपनी यात्रा के दौरान 20 राज्यों से आए प्रतिनिधियों के साथ गांधीघाट और नीम का वह ऐतिहासिक पेड़ देखने पहुंचे, जिसके नीचे अंग्रेजों ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान नील विरोधी किसानों को बांधकर पीटा था। इस मौके पर उन्होंने बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया।
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कार्यक्रम में हुआ विवाद
चंपारण के कवलपुर स्थित समाजसेवा सदन पंचायत भवन में जब तुषार गांधी समेत अन्य वक्ता मंच से देश में फैलते धार्मिक उन्माद और सरकार की नीतियों पर बोलने लगे, तो पंचायत के मुखिया विनय कुमार भड़क गए। उन्होंने मंच से बीच में ही बोलना बंद करवाया और तुषार गांधी से कहा:
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“आप गांधी जी के वंशज नहीं हो सकते। आपकी बातें नाथूराम गोडसे जैसी हैं। यहां गांधी जी का नाम लेकर गोडसे का एजेंडा चलाया जा रहा है। आप तुरंत यहां से चले जाएं।”
यह कहते हुए मुखिया ने तुषार गांधी को पंचायत भवन से बाहर निकल जाने को मजबूर कर दिया। तुषार गांधी ने शांतिपूर्वक कार्यक्रम स्थल छोड़ दिया, लेकिन इस व्यवहार पर उन्होंने तीखा जवाब देते हुए कहा:
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“गांधी के वंशज पर लांछन लगाने वाले खुद गोडसे की विचारधारा के अनुयायी हैं। यही असली लड़ाई है — गांधी बनाम गोडसे की।”
गांधीवादी नेताओं की कड़ी प्रतिक्रिया
घटना की गांधी विचारक संजय सिंह, विनय सिंह, और अन्य लोगों ने कड़ी निंदा की। संजय सिंह ने मुखिया विनय कुमार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा:
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“आप गांधी का मुखौटा पहनकर गोडसे का काम कर रहे हैं। यह नैतिक पतन है।”
वहीं गांधीवादी अनवर आलम अंसारी, सत्येन्द्रनाथ तिवारी और राजकुमार अंजुमन ने इस घटना को शर्मनाक बताते हुए कहा कि जिस चंपारण से महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा की लड़ाई शुरू की थी, उसी धरती पर उनके वंशज को इस तरह बेइज्जत किया गया — यह राष्ट्र की आत्मा को ठेस पहुंचाने जैसा है।
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ऐतिहासिक महत्व और आज की विडंबना
गौरतलब है कि 1917 में महात्मा गांधी ने यहीं चंपारण से अपने सत्याग्रह की शुरुआत की थी, जहां उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी थी। उस आंदोलन का नेतृत्व आज उनके वंशज कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा राजनीतिक और वैचारिक ध्रुवीकरण में उन्हें “गोडसे जैसी सोच” कहकर मंच से उतारा जा रहा है।
इस घटना ने न केवल गांधी परिवार के सम्मान को ठेस पहुंचाई है, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक संकेत भी है कि आज गांधी और गोडसे की विचारधाराएं आमने-सामने हैं, और गोडसे को महिमामंडित करने वाली ताकतें अब गांधी के नाम को भी खारिज करने से नहीं हिचकतीं।