बिहार चुनाव 2025: आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) की सक्रियता से महागठबंधन की बढ़ी मुश्किलें?
🔎 Azad Samaj Party Bihar Election 2025 | Chandrashekhar Azad Ravan | Mahagathbandhan vs ASP AIMIM BSP | दलित मुस्लिम वोट बैंक विश्लेषण
📰 बिहार में नए राजनीतिक समीकरणों की दस्तक
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है। इसी कड़ी में चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ की पार्टी आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने बिहार में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। हाल ही में घोषित 40 चुनाव प्रभारियों की सूची इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पार्टी अब चुनावी मैदान में गंभीरता से उतरने को तैयार है।
🔷 दलित-पिछड़ा-मुस्लिम वोट बैंक की नई राजनीति
ASP (कांशीराम) मुख्य रूप से दलित, पिछड़ा और मुस्लिम समुदाय पर केंद्रित राजनीति करती है — वही वर्ग जो परंपरागत रूप से राजद और महागठबंधन का मजबूत आधार रहा है। चंद्रशेखर आज़ाद की बढ़ती लोकप्रियता, विशेषकर युवाओं में, सामाजिक न्याय के पुराने विमर्श को नए तेवर दे रही है।
🔶 महागठबंधन को क्यों हो सकता है सबसे अधिक नुकसान?
✅ 1. वोट बैंक का विभाजन
राजद और कांग्रेस लंबे समय से दलित-पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ पर निर्भर रहे हैं। ASP, AIMIM, BSP और जन सुराज पार्टी जैसे दल इस गठजोड़ में सेंध लगा सकते हैं।
✅ 2. AIMIM का सीमांचल प्रभाव
ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 में 5 सीटें जीती थीं। इस बार सीमांचल समेत अन्य मुस्लिम-बहुल इलाकों में भी वह महागठबंधन के वोट काट सकती है।
✅ 3. BSP और ASP का दलित प्रभाव
BSP का परंपरागत दलित आधार और ASP का युवा-आकर्षण, दोनों मिलकर राजद को नुकसान पहुंचा सकते हैं, विशेषकर अनुसूचित जाति आरक्षित सीटों पर।
✅ 4. जन सुराज का ग्रामीण असर
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी विकास, भ्रष्टाचार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर फोकस कर ग्रामीण वोटर को साध रही है, जो JDU-RJD गठबंधन को प्रभावित कर सकता है।
⚠️ ‘बीजेपी की बी-टीम’ होने के आरोप: क्या है सच्चाई?
महागठबंधन नेताओं का आरोप है कि ये छोटे दल बीजेपी की परोक्ष मदद कर रहे हैं। ASP, AIMIM और BSP जैसे दलों पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वे भाजपा को सीधी टक्कर न देकर, राजद की जीत की संभावना को कमजोर कर रहे हैं।
हालांकि चंद्रशेखर आज़ाद और ओवैसी दोनों ही इन आरोपों को “लोकतंत्र विरोधी मानसिकता” बताते हुए खारिज करते हैं।
📊 राजनीतिक विश्लेषण और निष्कर्ष
बिहार चुनाव 2025 में ASP, AIMIM, BSP और जन सुराज जैसी ताकतों की मौजूदगी एक तीसरे मोर्चे के रूप में उभर सकती है। इनका कुल प्रभाव सीटों की हार-जीत से अधिक वोट प्रतिशत में विभाजन और राजनीतिक ध्रुवीकरण में दिख सकता है।
यदि ASP जैसी पार्टियां संगठित होकर लड़ें, तो बिहार की राजनीति में एक नया सामाजिक-राजनीतिक विकल्प तैयार हो सकता है, लेकिन तात्कालिक परिणामों में यह महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।