पटना, 30 अगस्त।
चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (CNLU) के जेंडर रिसोर्स सेंटर द्वारा प्रस्तुत एक हालिया रिपोर्ट ने दावा किया है कि बिहार की 40% विवाहित महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यह स्थिति राज्य में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। इसी संदर्भ में वुमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (WCDC) और UNFPA की ओर से तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें 61 ‘वन स्टॉप सेंटर’ (OSCs) के सलाहकारों को प्रशिक्षित किया गया।
शराबबंदी के बाद बदलती तस्वीर
लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह आंकड़ा बिहार की वास्तविक तस्वीर को दर्शाता है?
बिहार का सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास बताता है कि यहां महिलाओं को परिवार की लक्ष्मी माना जाता है। राज्य की 70% से अधिक आबादी गांवों में रहती है, जहां संयुक्त परिवार की परंपरा, लोकलाज और पारिवारिक अनुशासन के कारण घरेलू हिंसा की घटनाएं बड़े पैमाने पर सामने नहीं आतीं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि शराबबंदी लागू होने से पहले जरूर घरेलू हिंसा के मामले शराब सेवन से जुड़े मिलते थे। लेकिन 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से इस पर उल्लेखनीय कमी देखी गई है। ऐसे में 40% का आंकड़ा संदेह पैदा करता है और इसे बिहार में शराबबंदी के असर को झूठा साबित करने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है।
महिलाओं को पूजने की परंपरा
बिहार में देवी-पूजन, छठ महापर्व जैसी परंपराएं महिलाओं को परिवार और समाज में विशेष स्थान दिलाती हैं। ग्रामीण समाज में आज भी यह मान्यता है कि पत्नी घर की लक्ष्मी होती है और उसका अपमान पूरे परिवार के लिए अशुभ माना जाता है।
ऐसे में 40% विवाहित महिलाओं पर घरेलू हिंसा का दावा आम जनता को गुमराह करने और बिहार की सामाजिक छवि को धूमिल करने का प्रयास प्रतीत होता है।
यह सच है कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में अभी और कार्य करने की आवश्यकता है। लेकिन बिहार जैसे राज्य, जहां शराबबंदी और पारिवारिक परंपराओं ने महिलाओं के सम्मान को मजबूती दी है, वहां 40% का आंकड़ा अतिरंजित और विवादास्पद लगता है। इस तरह की रिपोर्टें तभी विश्वसनीय होंगी जब यह साफ-साफ बताया जाए कि आंकड़े किन आधारों, किन जिलों और किन परिस्थितियों से लिए गए हैं।