Saturday, September 13, 2025
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गांधी मैदान विवाद: राहुल गांधी के ठहरने की अनुमति को लेकर भ्रामक प्रचार या रणनीतिक राजनीति?

पटना, 31 अगस्त 2025

बिहार की राजनीति में इस समय कांग्रेस और राजद की साझा पदयात्रा चर्चा का विषय बनी हुई है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव लगातार नरेंद्र मोदी सरकार और केंद्रीय चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” का आरोप लगाते हुए बिहार के 20 जिलों में पदयात्रा निकाल रहे हैं। लेकिन ज़मीनी स्तर पर अपेक्षित सफलता न मिलने के आरोपों के बीच अब गांधी मैदान विवाद ने नया मोड़ ले लिया है।

कांग्रेस का आरोप और भ्रामक प्रचार की रणनीति

रविवार की सुबह बिहार के कई समाचार माध्यमों और सोशल मीडिया अकाउंट्स से यह खबर तेजी से फैलाई गई कि पटना जिला प्रशासन ने राहुल गांधी को गांधी मैदान में ठहरने की अनुमति ही नहीं दी। इस दावे के साथ यह तर्क जोड़ा गया कि बिहार में लोकतंत्र की हत्या हो रही है और विपक्ष के बड़े नेताओं को सभा करने और रुकने से भी रोका जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस और राजद की इस रणनीति का उद्देश्य भावनात्मक मुद्दा खड़ा करना है। दरअसल, प्रदेशभर में चल रही पदयात्रा को अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में “अनुमति न मिलने” का नैरेटिव गढ़कर जनता को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि केंद्र और राज्य सत्ता विपक्ष की आवाज़ को दबा रही है।

प्रशासन की सफाई

पटना प्रशासन ने इन दावों को भ्रामक और असत्य बताते हुए तुरंत प्रतिक्रिया दी।

अपर जिला दंडाधिकारी (विधि-व्यवस्था) ने स्पष्ट किया—

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस या किसी अन्य दल ने गांधी मैदान में रात्रि-विश्राम या किसी अन्य गतिविधि के लिए अनुमति मांगी ही नहीं थी।

कांग्रेस पार्टी ने केवल दो अनुमति मांगी थीं—

1. सभा आयोजन के लिए — जिसकी अनुमति जिला प्रशासन ने प्रदान कर दी।

2. रैली निकालने के लिए — जिसकी अनुमति माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित शर्तों के साथ दी गई।

प्रशासन ने यह भी कहा कि “राहुल गांधी को गांधी मैदान में रुकने की अनुमति नहीं मिली” जैसी खबरें पूरी तरह अफवाह हैं।

मीडिया की भूमिका पर सवाल

जिला प्रशासन ने इस मामले में मीडिया हाउसों को भी अप्रत्यक्ष चेतावनी देते हुए कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी है कि वह तथ्यों की पुष्टि कर खबरें प्रसारित करे। बिना सत्यापन के भ्रामक समाचार प्रसारित करने से जनता का भरोसा मीडिया पर कम होता है और लोकतांत्रिक विमर्श प्रभावित होता है।

राजनीतिक निहितार्थ

यह विवाद कई सवाल खड़े करता है—

1. क्या कांग्रेस और राजद जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए भावनात्मक मुद्दों का सहारा ले रहे हैं?

2. क्या प्रशासन की त्वरित सफाई से यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि भ्रामक प्रचार जानबूझकर किया गया?

3. क्या मीडिया हाउसों ने राजनीतिक दबाव या सनसनी की वजह से बिना पुष्टि के खबर चलाई?

 

गांधी मैदान विवाद ने यह साफ कर दिया है कि बिहार की राजनीति में अब सिर्फ जमीनी मुद्दे ही नहीं, बल्कि नैरेटिव बनाने और तोड़ने की लड़ाई भी तेज हो चुकी है। कांग्रेस और राजद जहां इसे लोकतंत्र की हत्या बताकर जनता में आक्रोश पैदा करना चाहते हैं, वहीं जिला प्रशासन का कहना है कि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है।

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि राजनीति में तथ्यों और भ्रामक प्रचार के बीच जनता को सच कैसे मिलेगा और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसा कैसे कायम रहेगा।

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