हाल ही में चर्चित यूट्यूबर अजीत अंजुम द्वारा प्रकाशित वीडियो “‘SIR’ पर पटना से बड़ा खुलासा: वोटर्स से मिले बगैर जमा हो गया फॉर्म” को लेकर बिहार की राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। वीडियो में मतदाता सूची से संबंधित गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जिनमें यह दावा किया गया कि कुछ मतदाताओं की जानकारी बिना उनकी सहमति के या जानकारी के फॉर्म भरकर जमा कर दी गई है।
इस संदर्भ में बिहार राज्य चुनाव आयोग ने यूट्यूबर अजीत अंजुम से अपील की है कि वे अपने वीडियो में दर्शाए गए सभी संबंधित व्यक्तियों के नाम और उनके मतदान केंद्र (बूथ) संख्या सहित पूर्ण विवरण उन्हें उपलब्ध कराएं। आयोग का कहना है कि किसी भी राज्य के निर्वाचक या मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के माध्यम से इस विषय की विधिवत जाँच कराई जाएगी और यदि त्रुटि पाई जाती है, तो अगस्त माह में ही तत्काल प्रभाव से सुधार किया जाएगा।
पटना जिलाधिकारी की पहल: पुनरीक्षण अभियान में पारदर्शिता के लिए राजनीतिक दलों से संवाद
आयोग ने किया दो चरणों में सुधार की प्रक्रिया का ऐलान
बिहार चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची में त्रुटियों को सुधारने की प्रक्रिया केवल अगस्त तक ही सीमित नहीं रहेगी। 1 अगस्त के बाद भी एक माह का अतिरिक्त समय जनता और राजनीतिक दलों को दिया जाएगा, जिसके दौरान वे दावे और आपत्तियाँ दर्ज करा सकते हैं। आयोग ने यह भरोसा दिलाया है कि यदि इस अवधि में भी कोई वैध आपत्ति आती है, तो उसका विधिसम्मत और पारदर्शी तरीके से समाधान किया जाएगा।
मीडिया और विपक्ष के विरोध के बीच आयोग की संतुलित भूमिका
एक तरफ विपक्षी दल और कुछ राष्ट्रीय स्तर के मीडिया कर्मी, विशेषकर सोशल मीडिया पर सक्रिय पत्रकार, इस मतदाता पुनर्निरीक्षण अभियान को लेकर लगातार आरोप और शंकाएं उठा रहे हैं। वे इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर, बिहार राज्य चुनाव आयोग के अधिकारी संयमित एवं संतुलित रुख अपनाए हुए हैं। वे सीधे पलटवार न करते हुए तथ्यों के साथ जवाब देने पर जोर दे रहे हैं। आयोग का रुख यह है कि बिना प्रमाण के लगाए गए आरोपों पर सीधे कार्रवाई करने के बजाय, आरोप लगाने वालों से स्पष्ट प्रमाण और विवरण की मांग की जाए, ताकि मामले की तथ्यात्मक जाँच हो सके।
आयोग की सक्रियता और पारदर्शिता की मिसाल
राज्य चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए इस कदम को लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता की दिशा में एक मजबूत कदम माना जा रहा है। मतदाता सूची जैसी संवेदनशील प्रक्रिया में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए आयोग का यह रुख यह दर्शाता है कि वह न केवल जनता की शिकायतों को गंभीरता से ले रहा है, बल्कि समस्या की जड़ तक जाकर उसे सुधारने की पूरी तैयारी भी कर रहा है।
बिहार में वोटर वेरिफिकेशन पर बवाल: पारदर्शिता से क्यों डर रहा है विपक्ष?
जहाँ एक ओर डिजिटल मीडिया और विपक्ष लगातार सवाल उठा रहे हैं, वहीं बिहार चुनाव आयोग ने अपनी संवेदनशीलता और जवाबदेही का परिचय देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर कोई भी त्रुटि प्रमाणित होती है, तो उसे पूरी तत्परता से सुधारा जाएगा। इस पूरे घटनाक्रम में आयोग की भूमिका एक उत्तरदायी और लोकतांत्रिक संस्था के रूप में सामने आई है, जो चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को बनाए रखने को लेकर पूरी तरह संकल्पित है।