Wednesday, November 20, 2024
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उत्तरप्रदेश के बाहुबली व पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की होगी रिहाई

उत्तरप्रदेश की राजनीति में भूचाल ला देने वाली एक हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा भुगत रहे पूर्वी उत्तरप्रदेश के बाहुबली और पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी रिहा होंगे।सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी रिहाई पर रोक लगाने से किया इंकार।

उत्तरप्रदेश में भी चुनावपूर्व का अभ्यास शुरू हो गया,कवियत्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रहे पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को अच्छे आचरण के आधार पर  राज्य सरकार के आदेश से रिहाई मिल रही है।
मधुमिता हत्याकांड 
नौ मई, 2003 को लखनऊ के सभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एक ख़ास बैठक में व्यस्त थे। शाम के चार बजे से चल रही इस बैठक में अगले दिन यानी 10 मई को शहर में होने वाले चुप ताज़िया के जुलूस को लेकर सुरक्षा व्यवस्था की तैयारियों पर चर्चा हो रही थी.
इसी बैठक में मौजूद लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनिल अग्रवाल ने ज़िले के एसपी (क्राइम) राजेश पांडेय और एसपी ट्रांस-गोमती सत्येंद्रवीर सिंह को इशारे से बुलाया। एस एस पी महोदय ने उक्त दोनों पुलिस अफसरों को निशांतगंज जाने को कहा।निशांतगंज के पेपर मिल कॉलोनी के एक मकान में एक महिला की हत्या की सूचना आई थी।
यह महिला थी मधुमिता शुक्ला, जिसके बारे में शुरू में पुलिस को कोई जानकारी नहीं थी।पहली नजर में यह हत्या लूट की वजह से हुई प्रतीत होती थी।कमरे के फर्श पर पड़ी युवा महिला की लाश देखकर पुलिस को लगा की गोली बहुत करीब से मारी गई थी।
पेपर मिल कॉलोनी में हुई इस हत्या ने उत्तरप्रदेश के लखनऊ से लेकर दिल्ली तक भूचाल ला दिया।
दरअसल मृतका कोई आम महिला नहीं थी वो एक नामी कवियत्री थी जिसका नाम था मधुमिता शुक्ला।जिस समय पुलिस घर पर पहुंची तो घर में दो लोग मौजूद थे एक घर का नौकर देशराज और दूसरी मधुमिता की बहन निधि शुक्ला।पूछताछ में देशराज ने बताया कि मधुमिता के जन पहचान के दो लोग उनसे मिलने आए थे उन्होंने दोनों को घर के अंदर बुलाया और देशराज को चाय बनाने को कहा।
जांच रिपोर्ट के अनुसार देशराज जब चाय बना रहा था तो उसे घर में गोलियां चलने की आवाज सुनाई दी।उसने झट से चूल्हे की आंच बंद कर रसोई से बाहर आया तो देखा की मधुमिता का कमरा बाहर से बंद था और घर आए दोनों लोग मोटरसाइकिल से भाग रहे थे।
मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने मौके पर पहुंचे एस एस पी से अलग बुलाकर साफ साफ बता दिया की मृतका गर्भवती है और उसके पेट में पल रहा बच्चा उत्तरप्रदेश के मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का है।
सुबह होते होते यह खबर सुर्खियां बन चुकी थी।
मधुमिता और अमरमणि

उस वक़्त अमरमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार में कद्दावर मंत्री थे।इससे पहले वो साल 1997 से 2000 के बीच उत्तर प्रदेश में बीजेपी के शासन के दौरान कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में भी मंत्री रह चुके थे।

इतने कद्दावर नेता का नाम इस हत्याकांड से जुड़ना साधारण घटना नहीं थी,आप अमरमणि त्रिपाठी की पावर का अंदाजा लगा सकते हैं की पोस्टमार्टम के वक्त वो कई गुर्गों के साथ मौजूद था।उसने भ्रूण की सैंपल तक नहीं लेने दिया ताकि भ्रूण का डी एन ए टेस्ट न हो पाए और आनन फानन में लाश को मधुमिता शुक्ला के गृह जिले लखीमपुर खीरी को रवाना कर दिया।
कहते हैं की इसकी जानकारी एक पत्रकार ने एसएसपी आनंद शुक्ला को दी उन्होंने शव को पुनः वापस मंगवाया,भ्रूण के सैंपल लिए और उसकी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था कर दी।बदले में मामले की जांच कर रहे एसपी क्राइम ब्रांच लखनऊ राजेश पांडेय का तबादला जालौन कर दिया गया।राजनीतिक दबाव में मामले की जांच सीआईडी को सौंप दी गई लेकिन अमरमणि त्रिपाठी के घर जांच करने गए दो अधिकारियों को उनके जुर्म के लिए सस्पेंड कर दिया गया।
राज्य सरकार की इस तरह की कार्रवाई बताती है कि उस वक़्त अमरमणि त्रिपाठी का राजनीतिक क़द कितना बड़ा था. सरकार के ऐसे फ़ैसले से यह मामला न्यूज़ चैनलों और अख़बारों की बड़ी ख़बर बन गया था।
मधुमिता की बहन निधि शुक्ला
इस मामले को अंजाम तक पहुंचाने और अपनी बहन को न्याय दिलाने के लिए निधि शुक्ला ने अथक प्रयास किए। उनके आवेदन पर अटल बिहारी वाजपेई जी के निर्देश पर मामला सीबीआई को सौंप दिया गया।सीबीआई की जांच,मौजूद साक्ष्य के आधार पर अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी को हत्याकांड का दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई।
सजा सुनने के बाद उन्हें गोरखपुर जेल भेज दिया गया लेकिन जुगत भिड़ाकर पहले अमरमणि और बाद में उनकी पत्नी भी बीमारी के बहाने अस्पताल शिफ्ट कर दी गई।निधि शुक्ला बताती हैं की जिस अच्छे आचरण और सजा पूरी होने की बात कही जा रही है वही पूरी तरह गलत है।त्रिपाठी दंपत्ति ने बीते तेरह साल का अधिकांश समय अस्पताल में बिताया है उन्होंने सजा काटी कब।
कुछ दिनों पहले बिहार में एक ऐसे ही मामले में बाहुबली नेता के रूप में प्रख्यात पूर्व सांसद आनंदमोहन की रिहाई हुई थी।उस वक्त भाजपा के नेताओं ने नीतीश के फैसले को गलत बताते हुए रिहाई पर रोक लगाने की मांग की थी।बसपा सुप्रीमो मायावती और रालोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने इसे दलित विरोधी फैसला तक बता दिया था। अब योगी जी की भाजपा सरकार ने अवैध संबंध,यौन शौषण और एक गर्भवती महिला के साज्यफ्ता मुजरिम को अच्छे आचरण का प्रमाणपत्र दे दिया तो भाजपा नेताओं के मुंह में ताला लग गया है।
दरअसल राजनीति है ही ऐसी यह आम लोगों की नहीं खास लोगों की चिंता करती है उन्हें राहत देती है। आनंद मोहन भी दबंग थे,उनकी मौजूदगी में अक्रोषित भीड़ ने एक दलित आईएएस अधिकारी कृष्णैय्या की हत्या कर दी थी। भीड़ के नेतृत्वकर्ता होने के नाते इल्जाम आनंद मोहन पर लगा और उन्हें सजा हो गई।
लेकिन अमरमणि का आरंभिक इतिहास ही अपराधिक रहा है उन्होंने अपराध और राजनीति का पाठ पूर्वांचल के बाहुबली हरिशंकर तिवारी से सीखा। पहले विधायक और फिर मंत्री बने।
लेकिन अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई भाजपा सरकार ने की है कोई अपराधी हो ,भ्रष्ट हो ,व्यभिचारी हो या फिर आतंकवाद का आरोपी कमल के फूल के साथ आते ही पवित्र हो जाता है।
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